श्राद्ध पक्ष में पितृ स्तोत्र का पाठ करने से मिलेगा पितृ दोष से छुटकारा, पढ़िए पितृ स्तोत्र भावार्थ के साथ एवं पढ़िए इसके फायदे
1- अर्चितानाममूर्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम्।
नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम्।।
हिन्दी अर्थ – जो सबके द्वारा पूजा किये जाने योग्य, अमूर्त, अत्यन्त तेजस्वी, ध्यानी तथा दिव्यदृष्टि से पूर्ण रूप से सम्पन्न है। उन पितरों को मैं सदा प्रणाम करता हूं।
2- इन्द्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा।
सप्तर्षीणां तथान्येषां तान् नमस्यामि कामदान्।।
हिन्दी अर्थ– जो इन्द्र आदि समस्त देवताओं, दक्ष, मारीच, सप्तर्षियों तथा दूसरों के भी नेता है, हर मनोकामना की पूर्ति करने वाले उन पितरो को मैं प्रणाम करता हूं।
3- मन्वादीनां च नेतार: सूर्याचन्दमसोस्तथा।
तान् नमस्यामहं सर्वान् पितृनप्युदधावपि।।
हिन्दी अर्थ– जो मनु आदि राजर्षियों, मुनिश्वरों तथा सूर्य देव और चन्द्र देव के भी नायक है। उन समस्त पितरों को मैं जल और समुद्र में भी प्रणाम करता हूं।
4- नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा। द्यावापृथिवोव्योश्च तथा नमस्यामि कृताञ्जलि:।।
हिन्दी अर्थ– नक्षत्रों, ग्रहों, वायु, अग्नि, आकाश और द्युलोक तथा पृथ्वी के भी जो नेता हैं, उन पितरों को मैं हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूं। सदैव उनका आशीर्वाद मुझ पर बना रहे।
5- देवर्षीणां जनितृंश्च सर्वलोकनमस्कृतान्। अक्षय्यस्य सदा दातृन् नमस्येहं कृताञ्जलि:।।
हिन्दी अर्थ– जो देवर्षियों के जन्मदाता, समस्त लोकों द्वारा वन्दित तथा सदा अक्षय फल को देने वाले हैं, उन पितरों को मैं हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूं।
6- प्रजापते: कश्पाय सोमाय वरुणाय च। योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृताञ्जलि:।।
हिन्दी अर्थ– प्रजापति, कश्यप, सोम, वरूण तथा योगेश्वरों के रूप में स्थित पितरों को सदा हाथ जोड़कर सदैव प्रणाम करता हूं।
7- नमो गणेभ्य: सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु।
स्वयम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे।।
हिन्दी अर्थ– सातों लोकों में स्थित सात पितृगणों को प्रणाम है। मैं योगदृष्टिसम्पन्न स्वयम्भू जगतपिता ब्रह्माजी को प्रणाम करता हूं। सदैव आपका आशीर्वाद मुझ पर बना रहे।
8- सोमाधारान् पितृगणान् योगमूर्तिधरांस्तथा।
नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम्।।
हिन्दी अर्थ– चन्द्र देव के आधार पर प्रतिष्ठित तथा योगमूर्तिधारी पितृगणों को मैं प्रणाम करता हूं। साथ ही सम्पूर्ण जगत् के पिता सोम को प्रणाम करता हूं। सदैव उनका आशीर्वाद मुझ पर बना रहे।
9- अग्रिरूपांस्तथैवान्यान् नमस्यामि पितृनहम्। अग्रीषोममयं विश्वं यत एतदशेषत:।।
हिन्दी अर्थ– अग्निस्वरूप अन्य पितरों को मैं प्रणाम करता हूं, क्योंकि श्री पितर जी यह सम्पूर्ण जगत् अग्नि और सोममय है।उनका आशीर्वाद सदैव बना रहे।
10- ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्रिमूर्तय:। जगत्स्वरूपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरूपिण:।।
तेभ्योखिलेभ्यो योगिभ्य: पितृभ्यो यतामनस:। नमो नमो नमस्तेस्तु प्रसीदन्तु स्वधाभुज।।
हिन्दी अर्थ– जो पितर तेज में स्थित हैं, जो ये चन्द्रमा, सूर्य और अग्नि के रूप में दृष्टिगोचर होते हैं तथा जो जगत्स्वरूप एवं ब्रह्मस्वरूप हैं, उन सम्पूर्ण योगी पितरो को मैं एकाग्रचित्त होकर हर बार प्रणाम करता हूं। उन्हें बारम्बार प्रणाम है। वे स्वधाभोजी पितर मुझपर प्रसन्न हो उनका आशीर्वाद सदैव मुझ पर बना रहे।
जिस परिवार में नित्य पितृ स्त्रोत का पाठ होता है , उस परिवार में किसी प्रकार की कोई कमी नही होती है । वहाँ पर सुख- सम्रद्धि में वृद्धि होती है एवँ पारिवारिक रूप से शांति का माहौल रहता है।
जिस परिवार में नित्य पितृ स्त्रोत का पाठ नियम से होता है उस परिवार के सभी सदस्य प्रसन्न एवँ स्वस्थ रहते है उनके कार्य स्वतः पूर्ण होने लगते है। उनके कार्य की समस्त बाधाएं अपने आप समाप्त हो जाती है।
जिस व्यक्ति के कुंडली मे पितृ दोष होता है और वह व्यक्ति नियमित रूप से पूर्ण विधि विधान से श्री पितृ स्त्रोत का पाठ करता है ,तो उसकी कुंडली मे पितृ दोष समाप्त होने लगता है। उसे उसके बुरे परिणाम मिलना बंद हो जाते है।
जिस भी व्यक्ति के जीवन मे किसी भी कार्य को करने से पहले कोई न कोई बाधा आ जाती है तो उस व्यक्ति के नित्य पितृ स्त्रोत का पाठ करने से वह बाधा समाप्त होने लगती है ओर उस व्यक्ति के समस्त कार्य पूर्ण होने लगते है। उस व्यक्ति की तरक्की निरन्तर बढ़ती रहती है।
जो व्यक्ति नित्य श्री पितृ स्त्रोत का पाठ करता है तो वह व्यक्ति दिन प्रतिदिन नोकरी एवँ व्यापार में तरक्की की ओर अग्रसर होता रहता है। उसे व्यापार एवँ नोकरी में सफलता मिलती है । वह दिन प्रतिदिन उच्च पदों की ओर अग्रसर होता है।