छठ पूजा एवँ महत्व उत्तर भारत के राज्य विशेषतौर पर बिहार और उत्तरप्रदेश में इस छठ पर्व को मुख्य पर्व माना जाता है...
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छठ पूजा एवँ महत्व
कार्तिक माह में दिवाली के ठीक छठवें दिन से शुरू होने वाले सूर्य उपासना के सबसे बड़े पर्व छठ पूजा की तैयारियाँ शुरू हो चुकी हैं। उत्तर भारत के राज्य विशेषतौर पर बिहार और उत्तरप्रदेश में इस छठ पर्व को मुख्य पर्व माना जाता है, जिसकी तैयारियों में लोग कई दिन पहले से लग जाते हैं।
प्रथम दिन :- कार्तिक शुक्ल की षष्ठी तिथि से प्रांरभ होकर लगातार 4 दिनों तक चलने वाले इस सूर्य उपासना का महापर्व उत्तरभारत का विशेष त्यौहार है, जिसे छठ पूजा, डाला छठ, छठी माई, छठ, छठ माई पूजा, सूर्य षष्ठी पूजा आदि कई नामों से जाना जाता है। इस वर्ष चूँकि दिवाली 14 नवंबर को मनाई गयी है इसलिए छठ की शुरुआत दिवाली के चार दिन बाद 18 नवंबर को नहाय खाय के साथ होगी। छठ के प्रथम दिन यानी नहाय खाय के दौरान मान्यता अनुसार व्रती स्नान आदि कर नए वस्त्र धारण करते हैं और इस दौरान घर में केवल शाकाहारी भोजन ही बनाया और व्रती द्वारा खाया जाता है। ध्यान रहे इस समय व्रती के भोजन करने के पश्चात ही घर के बाकी सदस्य भोजन ग्रहण करते हैं।
दूसरे दिन :- दूसरे दिन को खरना कहते हैं। यही वो दिन होता है जिस दिन से महिलाएं और पुरुष छठ पर्व के व्रत की शुरुआत करते हैं। इस दौरान रखे जाने वाले व्रत को छठ व्रती कहते हैं। व्रत 2020 में खरना 19 नवंबर को मनाया जाएगा। इसी दिन व्रती पूरा दिन निर्जला रहकर छठ मैया की पूजा करते हैं और इसके बाद शाम के समय छठ का विशेष प्रसाद: चावल, दूध के पकवान, ठेकुआ (घी, आटे से बना प्रसाद) बनाया जाता है। प्रसाद के साथ ही फल, सब्जियों से भी छठ की पूजा की जाती है। इस दिन गुड़ की खीर बनाने का भी विधान है।
तीसरे दिन :- छठ के तीसरे दिन डूबते सूर्य को अर्घ्य देने का विधान होता है। इस दौरान तीसरे दिन शाम यानी सांझ के अर्घ्य वाले दिन सुबह से ही शाम के पूजन की तैयारियाँ शुरू कर दी जाती है। इस बार शाम का सूर्य अर्घ्य 20 नवंबर को दिया जाएगा। इस दौरान छठ व्रती पूरे दिन निर्जला व्रत करते हुए शाम के पूजन की तैयारियाँ भी करते हैं। तीसरे दिन शाम के वक़्त पास ही की किसी पवित्र नदी, तालाब, कुण्ड आदि में खड़े होकर ढलते हुए सूर्य को अर्घ्य देते हुए उसे नमस्कार किया जाता है। इसके बाद शाम की पूजा के बाद अगली सुबह यानी चौथे दिन की पूजा की तैयारियाँ रात से ही शुरू हो जाती हैं।
चतुर्थ दिन :- छठ पूजा के चौथे दिन यानी दिवाली के सात दिन बाद (सप्तमी) की भोर में ही सूर्योदय के समय भी सूर्यास्त वाली उपासना की प्रक्रिया को दोहराया जाता है। इस वर्ष सप्तमी तिथि 21 नवंबर को है। इस दौरान किसी पवित्र नदी, तालाब, कुण्ड आदि में खड़े होकर उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देते हुए उसे नमस्कार किया जाता है और फिर विधिवत पूजा कर प्रसाद बाँटा जाता है और इस तरह चार दिवसीय छठ पूजा संपन्न होती है।