दीपावली पूजन मुहूर्त एवँ महत्व: माँ को वस्त्र में लाल या पीले रंग का रेशमी वस्त्र प्रिय है लक्ष्मी पूजन प्रदोष काल में ही करना चाहिए और यह समय संध्या...
नवरात्रि के साथ ही त्योहार भी शुरू हो जाते हैं। इस साल 5 अक्टूबर को दशहरा मनाया जाएगा। उसके बाद दिवाली (दीपावली) का त्योहार धूमधाम से सेलिब्रेट किया जाएगा। हिंदी पंचांग के अनुसार, दिवाली का त्योहार हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है। दिवाली के दिन धन और ऐश्वर्य की माता लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा की जाती है। हालांकि इस साल मलमास के कारण दिवाली में विलंब है। जिसके कारण दिवाली की तारीख को लेकर लोगों के बीच भ्रम है। जानिए इस साल दिवाली का त्योहार किस तारीख को है और क्या है पूजा का शुभ मुहूर्त ?
इस वर्ष कार्तिक माह की अमावस्या तिथि 24 और 25 अक्टूबर दोनों दिन पड़ रही है। लेकिन 25 अक्टूबर को अमावस्या तिथि प्रदोष काल से पहले ही समाप्त हो रही है। वहीं 24 अक्टूबर को प्रदोष काल में अमावस्या तिथि होगी। 24 अक्टूबर को निशित काल में भी अमावस्या तिथि होगी। इसलिए इस साल 24 अक्टूबर को ही पूरे देश में दीवाली का पर्व मनाया जाएगा।
माँ को वस्त्र में लाल या पीले रंग का रेशमी वस्त्र प्रिय है। देवी लक्ष्मी की पूजा में दीपक, कलश, कमल पुष्प, जावित्री, मोदक, श्रीफल, सीताफल, बेर, अनार के फल, गुलाब, चन्दन इत्र, चावल, केसर की मिठाई, शिरा आदि का प्रयोग अवश्य करना चाहिए। दीप प्रज्वलित करने हेतु गाय घी, मूंगफली या तिल के तेल के प्रयोग से लक्ष्मी माँ को प्रसन्न किया जाता है।
सर्वप्रथम माँ लक्ष्मी व गणेशजी की प्रतिमाओं को चौकी पर रखें। ध्यान रहें कि उनका मुख पूर्व या पश्चिम दिशा की ओर रहें और लक्ष्मीजी की प्रतिमा गणेशजी के दाहिनी ओर रहें। कलश को लक्ष्मीजी के पास चावलों पर रखें। नारियल को लाल वस्त्र में लपेट कर उसे कलश पर रखें। यह कलश वरुण का प्रतीक होता है। एक दीपक को घी और दूसरें को तेल से भर कर और एक दीपक को चौकी के दाईं ओर और दूसरें को लक्ष्मी-गणेश की प्रतिमाओं के चरणों में रखें।
लक्ष्मी-गणेश के प्रतिमाओं से सुसज्जित चौकी के समक्ष एक और चौकी रखकर उस पर लाल वस्त्र बिछाएं। उस लाल वस्त्र पर चावल से नवग्रह बनाएं। साथ ही रोली से स्वास्तिक एवं ॐ का चिह्न भी बनाएं। पूजा करने हेतु उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठे। तत्पश्चात केवल प्रदोष काल में ही माता लक्ष्मी की पूजा करें। माता की स्तुति और पूजा के बाद दीप दान भी अवश्य करें। लक्ष्मी पूजन के समय लक्ष्मी मंत्र का उच्चारण करते रहें – ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नम:
लक्ष्मी पूजन प्रदोष काल में ही करना चाहिए और यह समय संध्याकाळ के पश्चात आरंभ होगा। हालाँकि इसमें भी स्थिर लग्न में माँ लक्ष्मी की पूजा करना सर्वोत्तम माना जाता है। स्थिर लग्न में पूजन कार्य करने से माँ लक्ष्मी घर में वास करती है। वृषभ लग्न को स्थिर लग्न माना जाता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान राम लंका विजय कर पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ वनवास पूरा करने के बाद अयोध्या लौटे थे। तब अयोध्या का हर घर दीपक और रोशनी से जगमगा उठा था। अयोध्यावासियों ने भगवान राम के घर लौटने की खुशी में घर को दीपों से सजाया था। तब से हर साल कार्तिक मास की अमावस्या को दिवाली या दीपावली का त्योहार मनाया जाता है।