महामृत्युंजय मंत्र के लाभ,Read Maha Mrityunjaya Mantra meaning, महामृत्युंजय मंत्र की रचना
शिव पुराण का सीधा संबंध शैव मत से है। शिव पुराण पुराण में मुख्य रूप से भगवान शिव की भक्ति और भगवान भोलेनाथ की महिमा का वर्णन किया गया है। प्राय: लगभग सभी पुराणों में भगवान शिव को त्याग,समर्पण, तपस्या, वात्सल्य तथा करुणा की मूर्ति बताया गया है। भगवान शिव के बारे में कहा गया है की उन्हें आसानी से प्रसन्न किया जा सकता है। भगवान भोलेनाथ की 'शिव पुराण' में भगवान शिव के जीवन से सम्बंधित उनके रहन-सहन, विवाह और उनके पुत्रों की उत्पत्ति के बारे में पूर्ण विस्तार से बताया गया है।
भगवान शिव अपने भक्तों की भक्ति से जल्द प्रसन्न होकर उनकी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए ऐसे कई मंत्रो का वर्णन किया गया है, जिनका नित्य जाप कर मनोकामनाएं पूरी की जा सकती हैं। शिवपुराण में ऐसे बहुत से मंत्रों का वर्णन किया गया है, जो मानव कल्याण के लिए बेहद प्रभावी हैं। उन सभी मंत्रो में से शिव को जल्द प्रसन्न करने का सबसे प्रभावशाली मंत्र है महामृत्युंजय मंत्र(Mahamrityunjaya Mantra)।
देवता मंत्रों के अधीन होते हैं मंत्रधीनास्तु देवताः। मंत्रों से देवता प्रसन्न होते हैं। मंत्र से अनिष्टकारी योगों एवं असाध्य रोगों का नाश होता है तथा सिद्धियों की प्राप्ति भी होती है। ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद, तैत्तिरीय संहिता एवं निरुवतादि मंत्र शास्त्रीय ग्रंथों में त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्द्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्। उक्त मंत्र मृत्युंजय मंत्र के नाम से प्रसिद्ध है। शिवपुराण में सतीखण्ड में इस मंत्र को 'सर्वोत्तम' महामंत्र' की संज्ञान से विभूषित किया गया है- मृत संजीवनी मंत्रों मम सर्वोत्तम स्मृतः। इस मंत्र को शुक्राचार्य द्वारा आराधित 'मृतसंजीवनी विद्या' के नाम से भी जाना जाता है। नारायणणोपनिषद् एवं मंत्र सार में- मृत्युर्विनिर्जितो यस्मात तस्मान्यमृत्युंजय स्मतः अर्थात् मृत्यु पर विजय प्राप्त करने के कारण इन मंत्र योगों को 'मृत्युंजय' कहा जाता है। सामान्यतः मंत्र तीन प्रकार के होते हैं वैदिक, तांत्रिक, एवं शाबरी। इनमें वैदिक मंत्र शीघ्र फल देने वाले त्र्यम्बक मंत्र भी वैदिक मंत्र हैं।
जो जातक भक्तिपूर्वक इस मंत्र का जाप करते हैं, उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं सताता, उम्र बढ़ती है। इस मंत्र को जीवन प्रदाता मंत्र भी कहा गया है। प्रत्यक्षं ज्योतिषं शास्त्रम् अर्थात् ज्योतिष प्रत्यक्ष शास्त्र है। फलित ज्योतिष में महादशा एवं अन्तर्दशा का बड़ा महत्व है। ज्योतिष में वर्णित मारकेश ग्रहों की दशा एवं अन्तर्दशा में महामृत्युंजय मंत्र (Mahamrityunjaya Mantra) प्रयोग फलदायी है। जन्म, मास, गोचर, अष्टक आदि में ग्रहजन्य पीड़ा के योग, मेलापक में नाड़ी के योग, मेलापक में नाड़ी दोष की स्थिति, शनि की साढ़ेसाती, अढय्या शनि, पनौती (पंचम शनि), राहु-केतु, पीड़ा, भाई का वियोग, मृत्युतुल्य विविध कष्ट, असाध्य रोग, त्रिदोषजन्य महारोग, अपमृत्युभय आदि अनिष्टकारी योगों में महामृत्युंजय प्रयोग रामबाण औषधि है।
महामृत्युजंय मंत्र का नित्य जाप व शिव पूजन करने से स्वास्थ उत्तम बना रहता है। अगर किसी बीमारी से पीड़ित हैं, तो वह रोग दूर हो जाता है। यदि आर्थिक समस्या बनी रहती है, धन हानि होती है, व्यापार में लाभ नहीं होता, तो इस मंत्र का जाप करने से धन-दौलत और वैभव प्राप्त होता है।
शनि की महादशा में शनि तथा राहु की अनिष्टकारी अन्तर्दशा, केतु में केतु तथा गुरु की अनिष्टकारी अन्तर्दशा, रवि की महादशा में रवि की अनिष्टकारी अंतर्दशा, चन्द्र की महादशा में बृहस्पति, शनि, केतु, शुक तथा सूर्य की अनिष्टकारी अन्तर्दशा, मंगल तथा राहु की अनिष्टकारी अन्तर्दशा, राहु की महादशा में गुरु की अनिष्टकारी अन्तर्दशा, शुक्र की महादशा में गुरु की अनिष्टकारी अन्तर्दशा, मंगल तथा राहु की अन्तर्दशा, गुरु की महादशा में गुरु की अनिष्टकारी अंतर्दशा, बुध की महादशा में मंगल-गुरु तथा शनि की अनिष्टकारी अन्तर्दशा आदि इस प्रकार मारकेश ग्रह की दशा अन्तर्दशा में सविधि मृत्युंजय जप, रुद्राभिषेक एवं शिवार्जन से ग्रहजन्य एवं रोगजन्य अनिष्टकारी बाधाएँ शीघ्र नष्ट होकर अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है।
उपर्युक्त अनिष्टकारी योगों के साथ ही अभीष्ट सिद्धि, पुत्र प्राप्ति, राजपद प्राप्ति, चुनाव में विजयी होने, मान-सम्मान, धन लाभ, महामारी आदि विभिन्न उपद्रवों, असाध्य एवं त्रिदोषजन्य महारोगादि विभिन्न प्रयोजनों में सविधि प्रमाण सहित महामृत्युंजय जप से मनोकामना पूर्ण होती है। विभिन्न प्रयोजनों में अनिष्टता के मान से 1 करोड़ 24 लाख, सवा लाख, दस हजार या एक हजार महामृत्युंजय जप करने का विधान उपलब्ध होता है। मंत्र दिखने में जरूर छोटा दिखाई देता है, किन्तु प्रभाव में अत्यंत चमत्कारी है। महामृत्युंजय के जप करवाने के लिए संपर्क करे ।
इस मंत्र का निरंतर जाप करने वाले जातकों को समाज में उच्च स्थान मिलता है। समाज में सम्मान बना रहता है, ख्याति फैलती है, नौकरी या कारोबार में तरक्की होती है, जीवन में आनंद की प्राप्ति होती है व सुख-समृद्धि बढ़ती है। ऐसे जातक जो निःसंतान है। वह प्रतिदिन शिव को जल अर्पित करने के साथ-साथ इस मंत्र का जाप करें, तो जल्द सुंदर संतान की प्राप्ति होगी।
अगर कुंडली में किसी भी प्रकार से मृत्यु दोष है, तो इस अनमोल मंत्र का जप करें। इस मंत्र का जाप करने से हर प्रकार की महामारी से बचा जा सकता है, साथ ही मंत्र जाप पारिवारिक समस्या, भूमि , भवन ,संपत्ति विवाद से भी बचता है।
इस मंत्र में आरोग्यकर शक्तियां है, जिसके जाप से ऐसी ऊर्जा उत्पन्न होती है, जो आपको मृत्यु के भय से मुक्त कर देती है, इसीलिए इसे मोक्ष मंत्र भी कहा जाता है। इस मंत्र के जप से शिव की कृपा प्राप्त होती है।
आपको व्यापार में घाटा हो रहा है, तो महामृत्युजंय मंत्र का जाप करें, लाभ होने लगेगा। भविष्य पुराण में कहा गया है कि महामृत्युंजय मंत्र का जाप करने से अच्छा स्वास्थ्य, धन, समृद्धि और लंबी उम्र मिलती है।
शिव पुराण के अनुसार, इस मंत्र का जप करने के लिए सुबह 2 से 4 बजे का समय सबसे उत्तम माना गया है, लेकिन अगर आप इस समय मंत्र जाप नहीं कर पाते हैं, तो सुबह उठकर स्नान कर साफ कपडे़ पहने, फिर कम से कम पांच बार रुद्राक्ष की माला से इस मंत्र का जाप करें।
मृत्युंजय जप, प्रकार एवं प्रयोगविधि का मंत्र महोदधि, मंत्र महार्णव, शारदातिक, मृत्युंजय कल्प एवं तांत्र, तंत्रसार, पुराण आदि धर्मशास्त्रीय ग्रंथों में विशिष्टता से उल्लेख है। मृत्युंजय मंत्र तीन प्रकार के हैं- पहला मंत्र और महामृत्युंजय मंत्र। पहला मंत्र तीन व्यह्यति- भूर्भुवः स्वः से सम्पुटित होने के कारण मृत्युंजय, दूसरा ॐ हौं जूं सः (त्रिबीज) और भूर्भुवः स्वः (तीन व्याह्यतियों) से सम्पुटित होने के कारण 'मृतसंजीवनी' तथा उपर्युक्त हौं जूं सः (त्रिबीज) तथा भूर्भुवः स्वः (तीन व्याह्यतियों) के प्रत्येक अक्षर के प्रारंभ में ॐ का सम्पुट लगाया जाता है। इसे ही शुक्राचार्य द्वारा आराधित महामृत्युंजय मंत्र कहा जाता है।
इस प्रकार वेदोक्त 'त्र्यम्बकं यजामहे' मंत्र में ॐ सहित विविध सम्पुट लगने से उपर्युक्त मंत्रों की रचना हुई है। उपर्युक्त तीन मंत्रों में मृतसंजीवनी मंत्र ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्द्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॐ स्वः भुवः ॐ सः जूं हौं ॐ। यह मंत्र सर्वाधिक प्रचलित एवं फल देने वाला माना गया है। कुछ लघु मंत्र भी प्रयोग में आते हैं, जैसे- त्र्यक्षरी अर्थात तीन अक्षरों वाला ॐ जूं सः पंचाक्षरी ॐ हौं जूं सः ॐ तथा ॐ जूं सः पालय पालय आदि। ॐ हौं जूं सः पालय पालय सः जूं हौं ॐ। हौं जूं सः पालय पालय सः जूं हौं ॐ।
इस मंत्र के 11 लाख अथवा सवा लाख जप का मृत्युंजय कवच यंत्र के साथ जप करने का विधान भी है। यंत्र को भोजपत्र पर अष्टगंध से लिखकर पुरुष के दाहिने तथा स्त्री के बाएँ हाथ पर बाँधने से असाध्य रोगों से मुक्ति होती है। सर्वप्रथम यंत्र की सविधि विभिन्न पूजा उपचारों से पूजा-अर्चना करना चाहिए, पूजा में विशेष रूप से आंकड़े, एवं धतूरे का फूल, केसरयुक्त, चंदन, बिल्वपत्र एवं बिल्वफल, भांग एवं जायफल का नैवेद्य आदि। मंत्र जप के पश्चात् सविधि हवन, तर्पण एवं मार्जन करना चाहिए। मंत्र प्रयोग विधि सुयोग्य वैदिक विद्वान आचार्य के आचार्यत्व या मार्गदर्शन में सविधि सम्पन्न हो तभी यथेष्ठ की प्राप्ति होती है, अन्यथा अर्थ का अनर्थ होने की आशंका हो सकती है।