हनुमान जी की आठ सिद्धियां एवं नव निधियां अपने भक्तो को आठ प्रकार की सिद्धयाँ तथा नौ प्रकार की निधियाँ प्रदान कर सकते हैं ऐसा सीतामाता ने उन्हे वरदान दिया....
*****अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता । अस बर दीन्ह जानकी माता ।। *****
उप्पर दी गयी हनुमान चालीसा की चौपाई के अनुसार बजरंग बलि अपने भक्तो को आठ प्रकार की सिद्धयाँ तथा नौ प्रकार की निधियाँ प्रदान कर सकते हैं ये वरदान बजरंगबली को सीतामाता द्वारा प्राप्त है। यह अष्ट सिद्धियां बड़ी ही चमत्कारिक होती है जिसकी बदौलत हनुमान जी ने असंभव से लगने वाले काम आसानी से सम्पन किये थे। इस लेख में हम आपको अष्ट सिद्धि एवं नौ निधियों और भगवत पुराण में वर्णित दस गौण सिद्धियों के बारे में विस्तार से बताने जा रहे है अगर आपको ये लेख पसंद आये तो इससे शेयर जरूर करे इस लेख में सभी बाते पुराने ग्रंथो द्वारा ली गयी है जैसे रामायण, हनुमान चालीसा, महाभारत इत्यादि।
अष्ट सिद्धि (Ashta Siddhi) | नव निधियां (Nav Nidhi) |
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अणिमा सिद्धि | पद्म निधि |
महिमा सिद्धि | महापद्म निधि |
गरिमा सिद्धि | नील निधि |
लघिमा सिद्धि | मुकुंद निधि |
प्राप्ति सिद्धि | नन्द निधि |
प्राकाम्य सिद्धि | मकर निधि |
ईशित्व सिद्धि | कच्छप निधि |
वशित्व सिद्धि | शंख निधि |
- | खर्व निधि |
हनुमान जी अष्ट सिद्धि के दाता है ये अष्टसिद्धी जिसके भी पास होती है वो संसार का स्वामी होता है। इन सिद्धियों में बहुत ताकत होती है इन सिद्धियों की वजह से ही हनुमान जी रामायण काल एवं महाभारत के युग में इतने बड़े बड़े काम कर पाए , हनुमान जी को जिन आठ सिद्धियों का स्वामी एवं दाता बताया गया है वे आठ सिद्धियां कुछ इस प्रकार हैं। इस बात का उल्लेख श्री हनुमान चालीसा में भी है
अणिमा सिद्धि के बल पर हनुमान जी कभी भी अति सूक्ष्म रूप धारण कर सकते हैं। इस सिद्धि का उपयोग हनुमान जी ने तब किया था जब वे समुद्र पार कर लंका पहुंचे थे। हनुमानजी ने अणिमा सिद्धि का उपयोग करके अति सूक्ष्म रूप धारण किया और पूरी लंका का निरीक्षण किया था। अति सूक्ष्म होने के कारण हनुमानजी के विषय में लंका के लोगों को पता तक नहीं चला।
महिमा सिद्धि के बल पर हनुमान ने कई बार विशाल रूप धारण किया है। जब हनुमानजी समुद्र पार करके लंका जा रहे थे, तब बीच रास्ते में सुरसा नामक राक्षसी ने उनका रास्ता रोक लिया था। उस समय सुरसा को परास्त करने के लिए हनुमानजी ने स्वयं का रूप सौ योजन तक बड़ा कर लिया था। इसके अलावा माता सीता को श्रीराम की वानर सेना पर विश्वास दिलाने के लिए महिमा सिद्धि का प्रयोग करते हुए स्वयं का रूप अत्यंत विशाल कर लिया था।
गरिमा सिद्धि की मदद से हनुमान जी स्वयं का भार किसी विशाल पर्वत के समान कर सकते हैं। गरिमा सिद्धि का उपयोग हनुमान जी ने महाभारत के समय में भीम के समक्ष किया था। एक समय भीम को अपनी शक्ति पर घमंड हो गया था। उस समय भीम का घमंड तोड़ने के लिए हनुमान जी एक वृद्ध वानर रूप धारण करके रास्ते के बीच में अपनी पूंछ फैलाकर बैठे हुए थे। भीम ने देखा कि एक वानर की पूंछ से रास्ते में फैली हुई है, तब भीम ने वृद्ध वानर से कहा कि वे अपनी पूंछ रास्ते से हटा लें। तब वृद्ध वानर ने कहा कि मैं वृद्धावस्था के कारण अपनी पूंछ हटा नहीं सकता, आप स्वयं हटा दीजिए। इसके बाद भीम वानर की पूंछ हटाने लगे, लेकिन पूंछ टस से मस नहीं हुई। भीम ने पूरी शक्ति का उपयोग किया, लेकिन सफलता नहीं मिली। इस प्रकार भीम का घमंड टूट गया।
लघिमा सिद्धि से हनुमान जी स्वयं का भार बिल्कुल हल्का कर सकते हैं और पलभर में वे कहीं भी आ-जा सकते हैं। जब हनुमान जी अशोक वाटिका में पहुंचे, तब वे अणिमा और लघिमा सिद्धि के बल पर सूक्ष्म रूप धारण करके अशोक वृक्ष के पत्तों में छिपे थे। इन पत्तों पर बैठे-बैठे ही सीता माता को अपना परिचय दिया था।
प्राप्ति सिद्धि की मदद से हनुमानजी किसी भी वस्तु को तुरंत ही प्राप्त कर लेते हैं। पशु-पक्षियों की भाषा को समझ लेते हैं, आने वाले समय को देख सकते हैं। रामायण में प्राप्ति सिद्धि के उपयोग से हनुमानजी ने सीता माता की खोज करते समय कई पशु-पक्षियों से चर्चा की थी। माता सीता को अशोक वाटिका में खोज लिया था।
प्राकाम्य सिद्धि की मदद से हनुमानजी पृथ्वी गहराइयों में पाताल तक जा सकते हैं, आकाश में उड़ सकते हैं और मनचाहे समय तक पानी में भी जीवित रह सकते हैं। प्राकाम्य सिद्धि से हनुमानजी चिरकाल तक युवा ही रहेंगे। साथ ही, वे अपनी इच्छा के अनुसार किसी भी देह को कारण कर सकते हैं। प्राकाम्य सिद्धि से वे किसी भी वस्तु को चिरकाल तक प्राप्त कर सकते हैं। प्राकाम्य सिद्धि की मदद से ही हनुमानजी ने श्रीराम की भक्ति को चिरकाल का प्राप्त कर लिया है।
ईशित्व सिद्धि की मदद से हनुमान जी को दैवीय शक्तियां प्राप्त हुई हैं। ईशित्व के प्रभाव से हनुमानजी ने पूरी वानर सेना का कुशल नेतृत्व किया था। ईशित्व सिद्धि के कारण ही उन्होंने सभी वानरों पर श्रेष्ठ नियंत्रण रखा। साथ ही, ईशित्व सिद्धि से हनुमानजी किसी मृत प्राणी को भी फिर से जीवित कर सकते हैं।
वशित्व सिद्धि के प्रभाव से हनुमानजी जितेंद्रिय हैं और मन पर नियंत्रण रखते हैं। वशित्व के कारण हनुमानजी किसी भी प्राणी को तुरंत ही अपने वश में कर लेते हैं। हनुमान के वश में आने के बाद प्राणी उनकी इच्छा के अनुसार ही कार्य करता है। वशित्व के प्रभाव से हनुमानजी अतुलित बल के धाम हैं।
श्री हनुमान चालीसा में हनुमान जी की नव निधियों का वर्णन किया गया है। ये नव निधिया बहुत शक्तिशाली होती है ये निधिया अगर किसी व्यक्ति को मिल जाये तो ये उसके जीवन को बहुत आनंदित बना देती है फिर व्यक्ति को किसी और चीज की जरूरत नहीं होती निचे इनके विस्तार के बारे में जानते है। हनुमान जी प्रसन्न होने पर जो नव निधियां भक्तों को देते है वो इस प्रकार है।
पद्म निधि लक्षणो से संपन्न मनुष्य सात्विक(satvik) होता है तथा स्वर्ण,चांदी आदि का संग्रह करके दान करता है ।
महापद्म निधि से लक्षित व्यक्ति अपने संग्रहित धन आदि का दान धार्मिक जनों में करता है ।
निल निधि से सुशोभित मनुष्य सात्विक तेजसे संयुक्त होता है। उसकी संपति तीन पीढीतक रहती है।
मुकुन्द निधि से लक्षित मनुष्य रजोगुण संपन्न होता है वह राज्यसंग्रह में लगा रहता है।
नन्द निधि युक्त व्यक्ति राजस और तामस गुणोंवाला होता है वही कुल का आधार होता है ।
मकर निधि संपन्न पुरुष अस्त्रों का संग्रह करनेवाला होता है ।
कच्छप निधि लक्षित व्यक्ति तामस गुणवाला होता है वह अपनी संपत्ति का स्वयं उपभोग करता है ।
शंख निधि एक पीढी के लिए होती है।
खर्व निधिवाले व्यक्ति के स्वभाव में मिश्रीत फल दिखाई देते हैं ।
पिछले लेखों में आपने महाबली हनुमान की अष्ट सिद्धियों और नौ निधियों के विषय में पढ़ा। इसके अतिरिक्त पवनपुत्र के पास 10 गौण सिद्धियों के होने का भी वर्णन है। ये गोपनीय और रहस्य्मयी 10 गौण सिद्धियां जिस किसी के पास भी होती हैं वो अजेय हो जाता है। भागवत पुराण में श्रीकृष्ण ने भी इन १० गौण सिद्धियों के महत्त्व का वर्णन किया है।