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हनुमान चालीसा को सिद्ध कैसे करे | Hanuman chalisa sidhi

कैसे पाये हनुमान जी का आशीर्वाद, कैसे करें हनुमान चालीसा की सिद्धि,केसे करे श्री हनुमान जी को प्रसन्न, जीवन के कष्टों को दूर करे श्री हनुमान चालीसा के द्वारा

हनुमान चालीसा को सिद्ध कैसे करे
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हनुमान चालीसा को सिद्ध कैसे करे

शास्त्रों के अनुसार कलयुग में हनुमानजी की भक्ति को सबसे ज़रूरी, प्रथम और उत्तम बताया गया है। हनुमानजी की भक्ति सबसे सरल और जल्द ही फल प्रदान करने वाली मानी गई है। यह भक्ति जहाँ हमें भूत-प्रेत जैसी न दिखने वाली आपदाओं से बचाती है, वहीं यह ग्रह-नक्षत्रों के बुरे प्रभाव से भी बचाती है। हनुमानजी को मनाने के लिए और उनकी कृपा पाने के लिए सबसे सरल उपाय है हनुमान चालीसा का नित्य पाठ।

यह साधना साधक श्रीराम नवमी, हनुमान जयन्ती अथवा किसी भी मंगलवार की रात्रि को शुरु कर सकता है तथा समय १० बजे के बाद का रहेगा। सर्वप्रथम साधक स्नान आदि से निवृत्त होकर लाल या भगवे वस्त्र धारण करके लाल आसन पर बैठ जाए। सकाम और निष्काम दोनों ही कार्यों में दिशा उत्तर ही रहेगी।

साधक अपने समीप ही किसी पात्र में 108 भुने हुए चने या 108 तिल की रेवड़ियाँ रख ले। अब साधक अपने सामने किसी बाजोट पर लाल वस्त्र बिछा कर उस पर हनुमानजी का चित्र या यन्त्र या विग्रह और साथ ही भगवान गणपतिजी का विग्रह या प्रतीक रूप में एक सुपारी स्थापित करे। उसके बाद दीपक और धूप-अगरबत्ती जलाए।

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फिर साधक भगवान गणपतिजी का सामान्य पूजन करे और ॐ वक्रतुण्डाय हुम् मन्त्र का एक माला जाप करे। तत्पश्चात साधक भगवान गणपतिजी से साधना की निर्विघ्न पूर्णता एवं सफलता के लिए प्रार्थना करे। फिर साधक सामान्य गुरु पूजन करे एवँ गुरु की आज्ञा ले एवँ सफलता के लिए पार्थना करे।

इसके बाद साधक भगवान हनुमानजी का सामान्य पूजन करे। उन्हें सिन्दूर से तिलक करे और फिर धूप-दीप अर्पित करे। साधक को भोग में गुड़ तथा उबले हुए चने अर्पित करने चाहिए। साथ ही कोई भी फल अर्पित किया जा सकता है। साधक दीपक तेल या घी का लगा सकता है। साधक को आक के पुष्प या लाल रंग के पुष्प समर्पित करना चाहिए।

इस क्रिया के बाद साधक "हं" बीज मंत्र का उच्चारण कुछ देर करे तथा उसके बाद अनुलोम-विलोम प्राणायाम करे। प्राणायाम के बाद साधक हाथ में जल लेकर संकल्प करे तथा अपनी मनोकामना बोले। अगर कोई विशेष इच्छा के लिए साधना की जा रही हो तो साधक को संकल्प लेना चाहिए कि मैं अमुक नाम का साधक अमुक गोत्र अमुक गुरु का शिष्य होकर यह साधना अमुक कार्य के लिए कर रहा हूँ। भगवान हनुमान मुझे इस हेतु सफलता के लिए शक्ति तथा आशीर्वाद प्रदान करे।

इसके बाद साधक राम रक्षा स्तोत्र का एक पाठ या "रां रामाय नमः" का यथासम्भव जाप करे। जाप के बाद साधक अपनी तीनों नाड़ियों अर्थात इडा, पिंगला तथा सुषुम्ना में श्री हनुमानजी को स्थापित मान कर उनका ध्यान करे

ॐ अतुलित बलधामं हेमशैलाभ देहं,
दनुजवन कृशानुं ज्ञानिनां अग्रगण्यं।
सकल गुणनिधानं वानराणामधीशं,
रघुपति प्रियभक्तं वातजातं नमामि।।

अब जो 108 भुने हुए चने या तिल की रेवड़ियाँ आपने ली थी, वे अपने सामने एक कटोरी में रख लें तथा हनुमान चालीसा का जाप शुरू कर दे। इस साधना में आपको श्रीहनुमान चालीसा के 108 पाठ करने हैं। आप हनुमान चालीसा पढ़ते जाएं और हर एक बार पाठ पूर्ण होने के बाद एक चना या रेवड़ी हनुमानजी के यन्त्र/चित्र/विग्रह को समर्पित करते जाएं। इस प्रकार 108 बार पाठ करने पर 108 चने या रेवड़ियाँ समर्पित करनी चाहिए।

108 पाठ पूरे होने के बाद साधक पुनः "हं" बीज मंत्र का थोड़ी देर उच्चारण करे तथा जाप को हनुमानजी के चरणों में समर्पित कर दे। यह साधना 21 दिनों की है। साधक या तो लगातार 21 दिनों तक प्रतिदिन यह साधना करे या हर मंगलवार को कुल 21 मंगलवार तक यह साधना करे। 21 वें दिन आपके द्वारा पूरे 108 पाठ करके चने या तिल की रेवड़ी जब चढ़ा दी जाए, तब उसके बाद साधना पूर्ण होने पर अन्तिम दिन मन्दिर जाएं और भगवान हनुमानजी के दर्शन करे। साथ ही साथ साधना के दौरान भी आप हनुमत दर्शन करते रहें।

साधक-साधिकाओं को यह साधना शुरू करने से एक दिन पूर्व से लेकर साधना समाप्त होने के एक दिन बाद तक कुल २३ दिन तक ब्रह्मचर्य का पालन करना अनिवार्य है। लेकिन साधना २१ मंगलवार तक करने की स्थिति में प्रयोग के एक दिन पूर्व, प्रयोग के दिन तथा प्रयोग के दूसरे दिन अर्थात कुल तीन दिन प्रति सप्ताह ब्रह्मचर्य पालन करना आवश्यक है। कुछ भी हो, कैसा भी संकट आए, आपने साधना शुरू कर दी तो छोड़ना नहीं। प्रभु आपकी परीक्षा भी ले सकते हैं। साधना से विचलित करेंगे ही, पर आप दृढ़ रहें, क्योंकि भक्ति में अटूट शक्ति है और एक बार आपने यह साधना कर ली तो जो आनन्द और जीवन में उत्साह का प्रवाह होगा - उसका वर्णन मैं अपनी तुच्छ बुद्धि से नहीं कर सकता। फिर भी इतना कह सकता हूँ कि इस साधना से निश्चित ही आप की अभिलाषा की पूर्ति होगी। क्योंकि तुलसीदास जी ने कहा है ना - कवन सो काज कठिन जग माही, जो नही होहि तात तुम पाहि।

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साधना का क्रम यही रहेगा, २१ दिन या २१ मंगलवार तक तथा प्रतिदिन जो १०८ चने या तिल की रेवड़ी आप ने प्रभु को अर्पण किए थे, वो आप ही को खाना है, किसी को देना नही है। आपकी यह श्री हनुमान चालीसा साधना सफल हों और आपको भगवान हनुमानजी का आशीर्वाद प्राप्त हों ।

नोट :- इस साधना के समय ब्रह्मचर्य का नियमानुसार पालन करे। सात्विक भोजन करे। झूठ न बोले । किसी को धोखा न दे।

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