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Gita Ke Updesh - भगवत गीता में श्रीकृष्ण ने बताए सफल जीवन के 7 अचूक उपदेश

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भगवत गीता में श्रीकृष्ण ने बताए सफल जीवन के 7 अचूक उपदेश

भगवत गीता के उपदेश में आत्मा का वर्णन

भगवत गीता के उपदेश में एक श्लोक है, गीता के उस श्लोक में भगवान कृष्ण ने मानव शरीर की तुलना शरीर पर पहने कपडे से की है। ऐसा कपड़ा जिसे आत्मा हर जन्म में बदलती है। अर्थात मानव शरीर , आत्मा का अस्थायी वस्त्र है, जिसे हर जन्म में बदला जाता है। इसका तात्पर्य यह है कि हमे शरीर से नही उसकी आत्मा से व्यक्ति की पहचान करनी चाहिए।

हमें अपनी आत्मा को सदैव शुद्ध रखना चाहिए हमें कभी किसी का बुरा नहीं सोचना चाहिए। आत्मा ही शरीर की ऊर्जा होती है हमारे शरीर त्यागने के बाद ये किसी और शरीर में वास करती है। व्यक्ति के मरने के बाद जो रीती रिवाज किये जाते है वे सब आत्मा शुद्धि के लिए ही किये जाते है। एक नवजात शिशु की आत्मा बोहत पवित्र होती है संसार में आने के बाद अपने कर्मो से ही हम आत्मा को अशुद्ध करते है।

भगवत गीता के उपदेश में क्रोध का वर्णन

हम क्रोध को सामान्य भावना मानते है लेकिन यह सामान्य भावना व्यक्ति के भीतर भ्रम की स्थिति पैदा करती है। क्रोध हमारे मश्तिक्ष की सोचने की क्षमता को क्षीण कर देता है, इसके फलस्वरूप हमारा मस्तिष्क सही और गलत के बीच अंतर करना छोड़ देता है, इसलिए व्यक्ति को क्रोध के हालातों से बचकर हमेशा शांत रहना चाहिए। ये बात हमें कई बार महसूस होती है जब हम गुस्से में किसी को कुछ भला-भूरा सुना देते है या कोई ऐसा निर्णय ले लेते है जिसका हमें पश्चाताप होता है। इसी लिए जीवन में अगर सफल होना है तो क्रोध पर नियंत्रण अति आवश्यक है।

भगवत गीता के उपदेश में अधिकता का वर्णन

हमरे हिन्दू शास्त्रों में एक लाइन बहुत ज्यादा प्रचलित है "अति सर्वत्र वर्जिते" किसी भी प्रकार की अधिकता इंसान के लिए घातक सिद्ध होती है। संबंधों में कड़वाहट हो या फिर मधुरता, खुशी हो या गम, हमे कभी भी "अति" नही करनी चाहिए। जीवन मे संतुलन बनाये रखना बहुत जरूरी है।

इसका एक उदहारण ये भी है जब हम कभी एक रोटी भी ज्यादा खा लेते है तो हमारा शरीर परेशान होने लगता है इसी प्रकार जीवन में अत्यधिक पैसा है जाने से भी व्यक्ति के जीवन में घमंड आ जाता है और वो बर्बादी की और बढ़ने लगता है। भगवान की भक्ति ही मात्रा एक रास्ता है जो हमें सही मार्गदर्शन देती है।

भगवत गीता के उपदेश में स्वार्थ का वर्णन

इंसान का स्वार्थ उसे अन्य लोगो से दूर ले जाकर नकारात्मक हालातो की ओर धकेलता है। परिणामस्वरूप व्यक्ति जीवन में अकेला पड़ जाता है। स्वार्थ शीशे में फैली धूल की तरह है, जिसकी वजह से व्यक्ति अपना प्रतिबिंब ही नही देख पाता । अगर जीवन मे खुशी चाहते है तो स्वार्थ को त्याग कर भगवान की भक्ति करे एवं श्री कृष्णा चालीसा का पाठ प्रतिदिन करे। श्री कृष्ण का आशीर्वाद सदैव आपके साथ बना रहेग।

Bhagwat geeta updesh

भगवत गीता के उपदेश में कर्म का फल

भगवत गीता के उपदेश में एक बोहत महत्व पूर्ण बात लिखी हुयी है "कर्म करो फल की चिंता मत करो"। इस उपदेश का तात्पर्य्य है की जीवन में जो भी काम हम करते है उसे निस्वार्थ भाव से करना चाहिए यदि ऐसा होता है तो एक ना एक दिन हमें उसका फल जरूर मिलता है।

ये किसी भी प्रकार का काम हो सकता है चाहे किसी की सेवा करना, मदद करना, बिज़नेस में प्रयास करना या फिर जीवन में किसी बाधा का सामने करना हमें सुब कुछ अपने ईश्वर पर छोड़ देना चाहिए बस अपने कर्म पर ध्यान देना ही हमरे बस में है। ईश्वर हमेशा अपने मनुष्यों का साथ देता है आखिर ईश्वर ही है जिसने मनुष्य को बनाया है। जब व्यक्ति इस प्रभावशाली सत्य को स्वीकार कर लेता है, तो उसका जीवन पूरी तरह बदल जाता है। इसीलिए कभी भी उसे अपने भविष्य या अतीत की चिंता नही करनी चाहिए।

इंसान को कभी अपने कर्तव्य से मुँह नही मोड़ना चाहिए। उसका जीवन उसके कर्मो के आधार पर ही फल देगा, इसलिए कर्म करने में कभी हिचकना नही चाहिए। इंसान को अपनी इच्छाओं को हमेशा नियंत्रण में रखना चहिए। बिना फल की इच्छा करते हुए अपनी इच्छाओं को नियंत्रित रख कर कर्म करते रहो निश्चित रूप से आपके सभी कार्य पूर्ण होंगे बस विश्वास पूर्ण रखे।

भगवत गीता के उपदेश में संदेह (शक) का वर्णन

संदेह या शक, मजबूत रिश्ते को भी खोखला कर देता है। जिज्ञासा होना लाजमी है लेकिन पूर्ण सत्य की खोज या फिर संदेह की आदत इंसान के दुख का कारण बनती है। व्यक्ति कई बार संदेह में अपने कर्रेबी को भी भला बुरा कह देता है और यही आपसी रंजिश का कारन बन जाता है। हमें कभी भी बात की गहरायी जाने बिना किसी पर संदेह नहीं करना चाहिए।

मृत्यु ही सत्य है का वर्णन

इस जीवन का मात्र एक ही सत्य है और वो है मृत्यु , भगवत गीता के अनुसार मृत्यु की सत्य है ये हर व्यक्ति को मालूम होना चाहिए एक ना एक दिन उसका अंत भी निश्चित है। जब इस बात को हम जानते ही है तो इंसान मौत से डरता क्यो है? जीवन की अटल सच्चाई से भयभीत होना वर्तमान खुशियों को बाधित करता है। इसलिए किसी भी प्रकार का डर नही रखना चाहिए। जीवन हमेशा भये मुक्त होकर जीना चाहिए और सदैव आगे बढ़ते रहना चाहिये।

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