इंद्रगढ़ बीजासन माता जी का मंदिर - इंदरगढ़ से 4 किलोमीटर दूर एक ऊंचे पहाड़ी शीर्ष पर बिजासन माता का मंदिर है। यहां पहुंचने के लिए बीच-बीच में...
इंदरगढ़ से 4 किलोमीटर दूर एक ऊंचे पहाड़ी शीर्ष पर बिजासन माता का मंदिर है। यहां पहुंचने के लिए बीच-बीच में विश्राम स्थल युक्त सीढ़ियां बनी है। पहाड़ी तलहटी में अनेक मंदिर दुकानें और विश्राम स्थल बने हैं। हाडोती क्षेत्र में विशेष रुप से वंदनीय बिजासन देवी की स्थापना सोलंकी राजाओं द्वारा की गई बताते हैं। एक कथा अनुसार नाथ संप्रदाय के एक बड़े सिद्ध कृपा नाथ महाराज (वास्तविक नाम कमल नाथ) जब स्थान स्थान पर तपस्या करते घूम रहे थे। तब विंध्याचल में एक स्थान पर तप करते हुए उन्हें विंध्याचल देवी ने साक्षात दर्शन देते हुए कहा कि मैं राजस्थान के अमुक स्थान पर हूं। साक्षात देवी दर्शन के बाद देवी के निर्देश अनुसार कृपा नाथ जी यहां पहुंचे तब इस स्थान पर बिजासन माता पहाड़ फोड़ कर प्रकट हुई थी, इसी दरा गांव में गुरुजी कृपानाथ ने अपना आसन जमाया।
जिन की तपस्थली दरा गांव में आज भी स्थित है। कहते हैं कि कृपा नाथ जी से देवी की साक्षात बातें होती थी। उधर वहां के सोलंकी राजा को लकवा होने के बाद देवीय आदेश द्वारा स्वास्थ्य लाभ के लिए इस स्थान पर पहुंचने को कहा गया। गुरुजी कृपानाथ के पास रहने पर सोलंकी नरेश का रोग ठीक होने लगा पूर्ण स्वस्थ हो जाने पर गुरु जी ने राजा को वापस लौट कर अपना कामकाज संभालने को कहा मगर राजा ने उनका सानिध्य और शिष्यता स्वीकारते हुए राजकाज छोड़ उनके साथ ही रहना स्वीकार किया। कुछ समय बाद उनकी पत्नी भी उन्हें ढूंढती ढूंढती यहां आ पहुंची और अपने स्वामी को सिद्ध बाबा कृपानाथ जी के शिष्य के रूप में पाया तब राजा और रानी दोनों ने गुरु कृपा नाथ की शिष्यता स्वीकारते हुए नाथ संप्रदाय को अपना लिया और आजीवन बिजासन माता की भक्ति और गुरु जी की सेवा की जिससे यह सोलंकी योगी कहलाए इनके बाद इनके वंशजों ने बीजासन माता की पूजा सेवा जारी रखी।
इस सुंदर प्राकृतिक धार्मिक स्थल पर सामान्य रूप से सभी सुविधाएं उपलब्ध है मगर ऊपर मुख्य मंदिर से पहाड़ी के मंदिर तक का छोटा सा रास्ता है। वहां पर सीढ़ीदार पहुंच मार्ग बनाने के साथ-साथ पहाड़ी शीर्ष के मंदिर के चारों ओर के उबड़ खाबड़ स्थल को समतल और सुंदरकृत करने से इस स्थान की सुंदरता में अवश्य ही अभीवृद्धि हुई है।