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Jai Bhole

Shiv Temples of Bundi | छोटी काशी के प्रमुश शिव मंदिर

बूंदी के प्रमुख दर्शनीय स्थल, छोटी काशी के प्रमुश शिव मंदिर,बूंदी को छोटीकाशी ( choti kashi) के नाम से क्यों जाना जाता है?, बूंदी के शिव मंदिर एवं प्राकृतिक वर्णन..

choti kashi bundi shiv temples

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बूंदी को छोटीकाशी ( choti kashi) के नाम से क्यों जाना जाता है ?

हाडा शासक राव सुर्जन के समय काशी विश्वनाथ में आयोजित शास्त्रार्थ में बून्दी के विद्वतजन के विजय प्राप्त करने के कारण काशी के विद्वानों के द्वारा बून्दी के विद्वान पंडितों के ज्ञान और विद्वता को देखते हुए हाडाओं की नगरी बून्दी को 'छोटीकाशी' की उपाधि से अलंकृत किया। यहीं नहीं ऐसी कई विशेषताएं है जो बून्दी को छोटी काशी के समकक्ष रखती है, जैसे- यहाँ हर गली मोहल्ले और स्थान स्थान पर स्थित शिवालयों की तादाद, यहाँ का रमणिक और सुरम्य वातावरण, यहाँ के वातावरण को गुंजित करती विद्वान पण्डितों के उच्चारित मन्त्रों की ध्वनियाँ, वैदिक, आध्यात्मिक और ज्योतिषीय ज्ञान का अकुत भण्डार और शिव की बूटी भांग का प्रचलन सहित सघन वनों, पहाडों में स्थित प्राकृतिक शिवालय।

छोटी काशी में सावन का महत्व

विघ्नहर्ता , बुद्धि के दाता श्री गणेश के पिता देवो के देव महादेव को सावन का माह अतिप्रिय है। सावन के माह में शिवलिंग पर शिवालयों में जल, दूध, पंचामृत, बिल्वपत्र, इत्र, आकड़े के पुष्प, धतूरा आदि अर्पण किये जाते है , श्रद्धालुओं की भारी भीड़ भगवान भोलेनाथ के मंत्रो से पूरे माहौल को भक्तिमय कर देती है। रुद्राभिषेक की ध्वनि से प्रत्येक व्यक्ति शिवभक्ति से ओतप्रोत हो जाता है। यह आनन्द उन्हें राजस्थान राज्य के हाडौती क्षेत्र की 'छोटी काशी' के नाम से विख्यात बून्दी नगर मे प्राप्त हो जाता हैं।

छोटी काशी के नाम से विख्यात और तुलसी के आधिक्य से वृंदावती नाम से वर्णित बून्दी जिला सावन माह में वास्तविक काशी में परिवर्तित हो जाता है। सावन माह की शुरुआत के साथ ही शिवालयों में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी है, जय भोले के जयघोष के साथ प्रकृति की गोद में बसे प्राकृतिक शिवालयों में लोग दर्शन के लिए बड़ी संख्या में पहुंच कर प्रतिदिन शिवलिंग पर जल, दूध सहित पंचामृत, बिल्वपत्र आदि से शिव अभिषेक प्रारम्भ कर देते है। पुराणों के अनुसार शिवालयों में अभिषेक करने से भगवान भक्त पर प्रसन्न होकर उन्हें धन-सुख, संपत्ति-वैभव तथा स्वस्थ रहने का आशीष देते हैं।

बूंदी के शिव मंदिर एवं प्राकृतिक वर्णन:-

सावन माह मे वर्षा ऋतु के साथ ही प्रकृति अपने पूर्ण सौंदर्य में आ जाती है, ऐसे में अरावली की पहाड़ियों में स्थित बूंदी का प्राकृतिक सौन्दर्य निखर उठता है, जंगलों मे हरी भरी वनस्पति, पहाड़ी नदी नालों में बहता बरसाती पानी, बहते झरनें लोगों को अपनी और स्वत: आकर्षित कर लेते हैं।

बूंदी के रामेश्वर महादेव, बैजनाथ, देवझर महादेव, भीमलत महादेव, दुर्वासा महादेव, सिंधकेश्वर महादेव, झर महादेव, कमलेश्वर महादेव, लकड़ेश्वर महादेव, अभयनाथ महादेव, भूतेश्वर महादेव, केदारेश्वर महादेव जैसे बड़े स्थानों पर प्रकृति की अनुपम छटा वर्षभर दर्शनार्थियों को आकर्षित करती हैं,परन्तु श्रावण मास में इन स्थानों पर धार्मिक गतिविधियों के साथ पिकनिक, गौठ जैसी गतिविधियां बढ जाती हैं। इन प्राकृतिक स्थानों पर जहाँ शिवभक्त प्रकृति की गौद में बने प्राकृतिक शिवालयों में पहुँच कर महादेव की आराधना कर अपनी श्रद्धा अनुसार पुरे श्रावण मास में कोई जल से अभिषेक कर बिल्वपत्र अर्पित करता है, तो कोई दूध और पंचामृत से अभिषेक कर देवों के देव महादेव को प्रसन्न करने का प्रयास करता है। इन प्राकृतिक स्थानों पर केवल शिवभक्त ही नहीं जाते हैं, वरन यहाँ आने वाले अधिकांश वे लोग होते हैं, जो प्रकृति का लुत्फ उठाने यहाँ आते है।

बूंदी के प्रमुख दर्शनीय स्थल (shiv temples in bundi rajasthan)

बूंदी के प्रमुख (दर्शनीय स्थल) शिव मंदिर जो है विश्व विख्यात, यहाँ देश विदेश से हर साल लाखो श्रद्धालु आते है और भोलेनाथ का आशीर्वाद लेके जाते है। बूंदी एक बहुत धार्मिक नगरी है इसी लिए यहाँ गली गली में मंदिर पाए जाते है पांडवो से लेके ऋषिमुनियों तक ने बूंदी के जंगलो में तपस्या की है।

1. केदारेश्वर महादेव मंदिर, बाणगंगा, बून्दी :-

हाडा शासकों के पूर्व का यह शिवालय बून्दी से लगभग 4 किमी दूर बाणगंगा के तट पर यह प्राचीन केदारेश्वर महादेव स्थापित हैं। इस मंदिर का निर्माण संवत 1073 में कोल्हण ने करवाया था। कहा जाता है कि कुष्ठ रोग से पीढित कोल्हन ने केदारेश्वर की कनक दंडवत यात्रा करते हुए बाणगंगा नदी में स्नान किया और स्नान करते ही कुष्ठ रोग से मुक्त हो गए, तब कोल्हण ने इस मन्दिर का निर्माण करवाया था। हाडौती के शिवालयो में कन्सुआ के मंदिर के पश्चात इसे ही अति प्राचीन माना जाता है। यहाँ पूरे वर्षभर धार्मिक अनुष्ठान और क्रियाकलाप चलते रहते हैं। यहाँ से निकल रही बाणगंगा नदी आगे चलकर जैतसागर तालाब मे मिलती हैं, जिसके किनारे पर सिद्धनाथ महादेव और माधों की पेड़ी पर प्राचीन शिवालय स्थापित हैं।

2.अभयनाथ महादेव मंदिर, बालचन्दपाडा, बून्दी :-

अभयनाथ महादेव मंदिर का निर्माण हाडाओ से पूर्व जैता मीणा के पितामह आबू मीणा ने संवत 1100 के आसपास करवाया था। इस कारण इसे आबूनाथ महादेव भी कहते है, जो शहर के बालचन्द पाड़ा क्षेत्र में हैं। इस मन्दिर का नवीनीकरण और जीर्णोद्धार संवत 1692 में राव छत्रशाल की धाय प्रथा ने तथा संवत 1752 में राव बुद्ध सिंह ने करवाया।

3. वैद्यनाथ महादेव, लंका गेट, बून्दी :-

शहर के लंका गेट रोड पर स्थित यह मन्दिर हाडा शासकों से पूर्व का हैं, जिसे गुजरात के सोलंकी राव जय सिंह की रानी ने निर्मित करवाया था। तांत्रिक पद्धति पर निर्मित होने से शिवभक्तो के लिए विशेष आकर्षण का केन्द्र हैं। यहाँ पर श्रावण मास के चौथे सोमवार को मेला आयोजित होता है। प्रत्येक श्रावण मास में यहाँ "ओऽम् शिव ओंकारा" 72 घण्टे का अखण्ड पाठ संचालित होता हैं। यहाँ से सप्त नदियों के जल से युक्त काँंवड यात्रा निकाली जाती है, जो मुख्य बाजारो से होते हुए रामेश्वर महादेव पहुँचती है, जहाँ रामेश्वर महादेव का जलाभिषेक किया जाता है। यहां सावन माह के चौथे सोमवार को मेला आयोजित होता है

4. कमलेश्वर महादेव, इन्द्रगढ, बून्दी :-

कोटा लालसोट मेगा हाइवे पर स्थित इन्द्रगढ से 17 किमी दूर सवाईमाधोपुर एवं बूंदी जिले की सीमा पर स्थित हैं कमलेश्वर महादेव का प्राचीन शिवालय।मध्यकालीन नागर शैली मे निर्मित इस मंदिर का निर्माण हम्मीर के पिता जैत्रसिंह ने वि.सं. 1345 में चाकन नदी के तट पर करवाया था। इसे मिनी खजुराहो भी कहते है। मुख्य शिवमंदिर देखने योग्य है, जिस पर पत्थरों को तराशकर विभिन्न मुद्राओं में योग, आसन एवं संगीत कला की मूर्तियाँँ सहित विभिन्न देवी-देवताओं की मूर्तियां उकेरी गई है। मन्दिर के पास ही रणथंभौर बाघ परियोजना के पर्यटन क्षेत्र के जोन 9 का प्रवेश द्वार है। मान्यता हैं कि कमलेश्वर महादेव में बने तीनों कुंडों में स्नान करने से लोगों के चर्म रोग ठीक होते हैं। यहाँ पर सुरक्षा की दृष्टि से प्रशासन की तरफ से बरसात के दिनों में राजस्थान पुलिस होमगार्ड तथा नागरिक सुरक्षा के जवानों को तैनात किया जाता है।

5. भीमलत महादेव, बून्दी :-

बूंदी जिले में बिजौलिया रोड़ पर बून्दी से 36 किमी दूर प्राचीन भीमतल महादेव का मंदिर और जलप्रपात स्थित हैं। यह मंदिर जमीन से नीचे स्थित हैं, जहाँ जाने के लिए सीढ़ियों बनी हुई है। यहाँ प्राकृतिक रुप से भोले नाथ का अभिषेक स्वत: ही होता रहता है। कहा जाता है कि महाभारत काल में अज्ञातवास के दौरान इस क्षेत्र मे पांडवों के प्यास लगने पर पीने के पानी का इंतजाम करने के लिए भीम द्वारा अपने पैर को जमीन पर मारने पर जलधारा फूट पड़ी, जो आज भी बह रही है। इस कारण इस स्थान को भीमतल कहा जाता है। तत्पश्चात यहां शिव परिवार की स्थापना की गई।

भीमलत के सौन्दर्यीकरण हेतु वर्ष 2012 में पर्यटन विकास के लिए 50 लाख के बजट से भीमलत जल प्रपात के बाहर और झरने के ऊपरी हिस्से पर भी चारों तरफ रैलिंग लगा दी गई, ताकि वहाँँ तक कोई न जा सके और किसी भी दुर्घटना से बचा जा सके। सीढिय़ों पर पुरानी लोहे की रैलिंग को हटाकर नई रैलिंग लगा दी गई। वहीं सीढिय़ों के रास्ते और मंदिर परिसर में भी बैंच लगाई गई। इनके अतिरिक्त अभयपुरा बांध पर वॉच टावर, नाले के दोनों ओर के साथ नाले के भीतर शिकारबुर्ज, ऊपरी झरने वाले हिस्से पर भी पर्यटक पगडंडी बनवाई गई।सुरक्षा की दृष्टि से प्रशासन की तरफ से बरसात के दिनों में राजस्थान पुलिस होमगार्ड तथा नागरिक सुरक्षा के जवानों को तैनात रहते हैं।

6. देवझर महादेव, सथूर :-

देवझर महादेव का यह मनोरम प्राकृतिक स्थान प्राचीन समय में मेघामुनि का आश्रम, कालान्तर में मार्कण्डेय आश्रम कहा जाता है, जो सथूर ग्राम से 8 किमी दूर घने जंगल में चन्द्रभागा नदी के उद्गमस्थल पर स्थित हैं। यहाँ आज भी मार्कण्डेय मुनि की प्रतिमा और आश्रम के अवशेष स्थित है। आज भी घने जंगल होने के बावजूद सैकड़ों श्रद्धालु यहाँ पर भोलेनाथ की आराधना उपासना के किए आते रहते हैं।

7. राजराजेश्वर महादेव, केशवराय पाटन

भगवान केशव की नगरी केशवराय पाटन से 2 किमी दूर चम्बल नदी के किनारे स्थित पौराणिक राजराजेश्वर महादेव मंदिर आस्था का बड़ा केन्द्र है। मंदिर में भगवान राजराजेश्वर की अद्भुत चतुर्मुखी प्रतिमा स्थापित हैं, जो बरबस ही श्रद्धालुओ को अपनी ओर आकर्षित करती है। मंदिर के सामने बने रियासतकाल के राजमहल में बूंदी नरेश सावन व कार्तिक माह में आकर प्रकृति के नजारे के साथ पूजा-अर्चना करते थे। धार्मिकस्थल के पास ही विकसित किया गया उद्यान मनमोहक दृश्य प्रस्तुत करता है।

इनके अतिरिक्त बून्दी में डोबरा महादेव, सिन्धकेश्वर महादेव, विश्वेश्वर महादेव, शुक्लेश्वर महादेव, महाकालेश्वर मंदिर, भावभट्ट मन्दिर, नवलेश्वर मन्दिर, झर महादेव बालापुरा, दुर्वासा महादेव बसोली, हुण्डेश्वर महादेव हिण्डोली, लकडेश्वर महादेव, पेच की बावडी, धुंधलेश्वर महादेव तलवास, नीलकण्ठ महादेव खटकड सहित प्रत्येक गाँँव मे छोटे बड़े शिवालय स्थापित हैं, जहाँ श्रद्धालु यथासामर्थ्य धार्मिक क्रियाकलाप सम्पादित करते है।

सोमवार को मेले का आयोजन:-

हाडौती की संस्कृति मेले उत्सवों के आयोजनों से अछुति नहीं हैं, यहाँ के निवासी हर मौके पर मौज मस्ती के बहाने निकाल लेते हैं, ऐसे मे सावन का माहौल, गरजते बादलों से बरसते पानी की बून्दें हो और चारों ओर हरियाली का साम्राज्य हो तो ऐसा मौसम खाली नहीं हो सकता। बून्दी के वासियों ने ऐसे मौसम का आनन्द लेने के लिए सावन माह के प्रत्येक सोमवार को मेलों की परम्परा स्थापित की, वैसे तो इन मेलों के आयोजन से कोई विशेष परम्परा नहीं जुडी हैं, केवल मौसम का आनन्द लेने और श्रावण के सोमवार को महादेव के दर्शन और प्रकृति भ्रमण के मौके ने मेलों को जन्म दिया। यह मेले केदारनाथ का मेला (सावन का पहला सोमवार), गणेशबाग का मेला (सावन का दूसरा सोमवार), अभयनाथ का मेला (सावन का तीसरा सोमवार) और वैद्यनाथ का मेला (सावन माह का चौथा सोमवार) नाम से जाने जाते हैं, इसी दौरान बून्दी के किले के पीछे पहाड़ी पर स्थित चामुण्डा माता का मेला श्रावण मास की अष्ठमी पर आयोजित होता है, तो सावन अमावस्या पर मोरड़ी की छतरी नवल सागर की पाल पर भी मेले का आयोजन हुआ करता था। जिनमें यहाँ की जनता यथा - बाल-बच्चे, महिलायें, जवान, बुजुर्ग सभी इन मेलों का लुत्फ लेते हुए, महादेव की आराधना और प्रकृति का आनन्द लेते हैं।

बूंदी का प्रमुख भोजन लड्डू बाटी का भोग :-

लड्डू बाटी हैं यहाँ का प्रमुख भोजन है, जिसे यहाँ कच्चा खाना कहा जाता हैं, जो कि तेल आदि मे तला हुआ न होकर गौबर के कण्डों आदि मे पकाया जाता हैं। इसमे दाल, कढी, बाटी या बाफला, कत्त, चावल या पुलाव और चटनी जैसे व्यंजन सम्मिलित होते हैं। यह खाना प्राकृतिक परिवेश में बनाया जाता है, इसका आनन्द उस समय कहीं गुणा बढ जाता हैं, जब बारिश की बून्दें गिरने लगती हैं। भांग का भी बूंदी में ज्यादा ही प्रचलन है और कच्चे भोजन के साथ तो विशेष रूप से इसे जोड़ा जाता है। यहाँ कच्चा खाना बनाने वाले विशेषज्ञ ब्राह्मण समाज के लोगों को माना जाता है, जो बडी तादाद में यहाँ उपलब्ध होते हैं। बाँसी, भण्डेडा, दुगारी, तलवास के पण्डितों को लड्डू बाटी बनाने मे सिद्धहस्त माना जाता है। एक अनुमान के आधार पर 400 से 500 व्यक्ति इस लड्डू बाटी व्यवसाय को अपनी आजीविका बनाये हुए हैं। श्रावण के महिने में इन पण्डितों की मांग और मेहनताना 2 से 3 गुणा बढ जाती हैं।

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