बड़ोदिया भेरू जी ( Bheruji) का एक प्राचीन मंदिर है,होते है चमत्कार ,भेरुजी के दर्शन मात्र से ही होते है सरे दुःख दूर pracheen bhairav Temple
बूंदी जिले के हिंडोली पंचायत समिति के बड़ोदिया क्षेत्र में बड़ोदिया भेरू जी ( Bheruji) का एक प्राचीन मंदिर है । यहां पर हर वर्ष हजारों लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं के द्वारा दर्शन किये जाते है । भेरू जी महाराज का आशीर्वाद लिया जाता है । ऐसी मान्यता है की भेरू जी महाराज के दर्शन करने मात्र से ही लोगो के सभी कार्य पूर्ण हो जाते है । लोगों के वर्षों पुरानी बीमारिया यहाँ बड़ोदिया भेरू जी का आशीर्वाद लेने से दूर हो जाती है। आस पास के क्षेत्रो के अलावा यहां पूरे भारत वर्ष से लोग भेरू जी का आशीर्वाद लेने आते है । बड़ोदिया भेरू जी के मंदिर के पास एक अति प्राचीन बावड़ी है जिसके दोनों द्वारों पर एक तरफ माँ सरस्वती एवँ एक तरफ गणेश जी का वास है । बावड़ी कलात्मक दृष्टि से भी अतिमहत्वपूर्ण है। भेरू जी के चमत्कार की घटनाएं पूरे भारत मे फैली हुई है। गाँव के लोगो का मानना है कि भेरू जी की कृपा से उनके गांव में हमेशा सुख एवँ सम्रद्धि बनी रहती है।
भेरू जी के मावे की बर्फी, गुड़ एवँ नमकीन का भोग लगाया जाता है। भेरू जी के दारू (Alcohol) भी चढ़ाई जाती है जिससे स्थानीय भाषा में धार लगाना कहा जाता है। आप चाहे तो दारू साथ में लेके भी जा सकते है और यदि आप लेके नहीं जा सकते तो वही पुजारी को पैसे देने पर उनके पास रखी बोतल में से चढ़वा सकते है क्योकि हर कोई दारू खरीदने में थोड़ा डरता है। भेरुजी जी के नारियल,घी और मठरी अथवा धान (गेहू के दाने) भी चढ़ाये जाती है।
भेरू जी के ज्योति जलाने का रिवाज है , ये ज्योति ज्यादातर रविवार , ग्यारस और नवरात्री में जलाई जाती है या फिर किसी अन्य बड़े दिन पर। ज्यादातर सभी श्रद्धालु भेरुजी के नारियल चढ़ाते है। नारियल बहरी आवरण को हटाके अंदर के हिस्से को अग्नि में जलाया जाता है एवं परशाद में से भी थोड़ा हिस्सा ज्योत में ही जलाया जाता है। ऐसा मन जाता है की ये सब अग्नि के रस्ते होक भेरुजी महाराज तक पोहोच जाता है।
हिण्डोली क्षेत्र के बड़ौदिया में दीपावली महापर्व के दूसरे दिन भाई दूज के अवसर पर घास भैरू महोत्सव का आयोजन होता है। लोक संस्कृति की अनूठी मिशाल बड़ोदिया घास भेरू महोत्सव पूरे देश में प्रसिद्ध है। यहां पर हर वर्ष हजारों की संख्या में लोग घास भेरू की सवारी में निकलने वाले हैरतअंगेज करतब देखने आते है। जिसमें सैलानी भी शामिल रहते है। गांव के युवाओं के द्वारा प्रमुख स्थानों पर झांकियां सजाई जाती है। शिव प्रतिमा से पानी निकलना, चकरी चलना, बावड़ी में पत्थर तेरना, सूत पर भारी-भरकम पत्थर लटकाना सहित कई कलाओं ने प्रदर्शन किया जाता है शाम को एक दर्जन बैलों की जोडिय़ों के साथ ग्रामीणों ने घासभेरू की सवारी निकाली जाती है एवं देश प्रदेश के समृद्धि के विकास की कामना की जाती है।
यहां पर आयोजित कार्यक्रम को पंचायत आज भी इक्कावन टंके अब रुपयों में बदल गए। में ही पूरा करवाती है। इसी में से सभी के पैसे नाई, कुम्हार,खाती आदि को हिसाब से वितरण किए जाते हैं । यह परंपरा रियासतकाल से चली आ रही है।ढोल तासों की मधुर स्वर लहरियों के बीच नाचते गाते कलाकारों के साथ हैरत अंगेज कारनामों का प्रदर्शन करती झांकियों के साथ बैलों द्वारा खींच कर सवारी निकाली जाती है। घास भैरु की सवारी में शामिल होने और देखने के लिए भारी जन सैलाव उमड़ता है। गांव में सुख शांति और सम्रद्दी की कामना को लेकर बैलों द्वारा खींच कर हर वर्ष निकाली जाने वाली घास भैरु की सवारी को जहां एक साल बैलो द्वारा खीच कर पीहर से ससुराल तो दूसरे साल ससुराल से पीहर लाया जाता हैं, इस दौरान घास भैरु द्वारा रास्ते में मचलने पर श्रद्दालुओं द्वारा उन्हें शराब की छांट(भोग) से मनाया जाता हैं।
बाबा काला की बावड़ी में भारी-भरकम पत्थर तैराने, शिव जटा से पानी निकालने, बिना लाइट के दूल्हा दुल्हन चकरी खाने, सूत पर भारी भरकम पत्थर लटकाने, कांच के गिलास पर टैंकर को खड़े करने का प्रदर्शन आकर्षण का केंद्र रहता है वही थाली में रखा युवक का सिर व हाथ पैर अलग-अलग जगह, सिर पर जीप उठाना, हाथ पर युवक को बिठाना, कुएं के ऊपर बैठा युवक आदि कई करतब दिखाए जाते है।