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Dadhimati Mata Temple - The ancient temple of Bundi

दधिमती माता मन्दिर:यह मंदिर मेंढक दरवाजे के बाहर सथूर रोड़ पर पश्चिममुखी बना हुआ है । इसे राव राजा बुध सिंह के शासन काल मे...

dadhimati mata temple

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बूंदी दधिमती माता जी का मंदिर

यह मंदिर मेंढक दरवाजे के बाहर सथूर रोड़ पर पश्चिममुखी बना हुआ है । इसे राव राजा बुध सिंह के शासन काल मे राजपुरोहित दाधीच गजमुख जी ने बनवाया है। बूंदी शहर में दाधीच समाज की कुलदेवी सर्व जगतजननी , सर्वजगत माता , महामाया , महालक्ष्मी, राजराजेश्वरी माँ दधिमती को शहर के हर वर्ग के भक्त विधि से पूजन करते है।

बावड़ी सहित बगीचे में भैरव ,हनुमान व शिव परिवार से युक्त लक्ष्मी, सरस्वती, दुर्गा स्वरूप उस देवी को हे भक्तों आप प्रणाम करिए। मां दधिमती के चरण कमल नख चंद्रमा और नूपुर झनकार से सेवित है। करगनी साड़ी और कंचुकी धारण करने वाली, पेट में तीन जगत को धारण करने वाली, जिनके स्तन भक्तों के अभीष्ट मनोरथों को दुहने वाले हैं। हृदय और कंठ में उत्तम 124 मोहर का तमण्या और हार से सुशोभित है हाथों में उत्तम कड़े और चूड़े धारण है। भुजाओं में भुजबंध शोभित है जिसकी गर्दन शंख के समान है दंत पंक्ति स्वच्छ व श्वेत है। होठ विम्बफल के समान कांति वाले है । नाक में नथ शोभित है। कमल समान नेत्र, टेढ़े भोरे ,कानो में कुंडल शोभित है । ललाट में सुंदर तिलक , सिर पर मुकुट सवारे, सिंह पर सवार विराजमान सर्वजगत जननी , सर्व जगतमाता , महामाया, महालक्ष्मी, राजराजेश्वरी माँ दधिमती के दर्शन मात्र से ही लोगो के कष्ट दूर हो जाते है।

मंदिर में माँ दधिमती के परिसर भैरव नाथ की चमत्कारिक प्रतिमा है साथ ही परिसर में शिव परिवार का मंदिर है जिसे मंडुकेश्वर महादेव कहा जाता है। मंडूक ऋषि की तपोस्थली होने के कारण इन्हें मंडुकेश्वर महादेव कहा जाता है । सावन के महीने में यहां दूर- दूर से भक्त दर्शन एवं अभिषेक करने आते है। भगवान शिव एवँ माता पार्वती जी की प्रतिमा के दर्शन से भक्त अपने समस्त दुखो को भूल जाता है एवं उसके सभी कार्य सिद्ध होने लगते है।

परिसर में एक बावड़ी भी है। इसे नरेश नारायण दास के समय नेगी लूंगा और रेगमाल ने संवत 1565 में खुदवाना शुरू किया। जिसे राव राजा सुरताण की ख्वास ललिता ने भी खुदवाया। परंतु बावड़ी पूर्ण नहीं हुई राव राजा राव भाव सिंह के शासन में सुखदेव के पुत्र भवानी दास ने इस बावड़ी को पूर्ण किया। बावड़ी के एक और मां सरस्वती हंस पर विराजमान है एवं दूसरी ओर दाएं सूंड में गणेश जी की प्रतिमा विराजमान है। बावड़ी में एक शिलालेख है जिसे बावड़ी की कुछ सीढ़ियां उतरकर पढ़ा जा सकता है शिलालेख के सामने एक आलिया बना हुआ है जिसमें भगवान का स्थान है। बावड़ी की बनावट स्थापत्य कला का एक बेजोड़ नमूना है।

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