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राजा राव बंगदेव - हाड़ौती की कहानी

राजा रावदेवा, दिल्ली के बादशाह सिकंदर लोदी ने हाडा राजाओं के ठाठ बाट देखते हुए जब राव देवा को दिल्ली बुलाया तो राव देवा हर राज को...

raja rav deva

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राजा राव देवा(सन1242 - 1244) एवं हाड़ौती की कहानी

राव बंगदेव के बाद उसके 12 लड़कों में राव देवा सिंहासन पर बैठा । राव देवा के तीन बेटे हर राज हथ जी और समरसी थे। दिल्ली के बादशाह सिकंदर लोदी ने हाडा राजाओं के ठाठ बाट देखते हुए जब राव देवा को दिल्ली बुलाया तो राव देवा हर राज को बम्बावदा का शासन अधिकार सौंप कर अपने छोटे पुत्र समरसी के साथ दिल्ली आया। कुछ दिन दिल्ली में रहने के बाद बादशाह ने राव देवा से उसका घोड़ा लेने की कोशिश की राव देवा उस घोड़े को किसी भी सूरत में नहीं देना चाहता था। उसमें चित्र घोड़े की कथा कुछ इस प्रकार थी ।बादशाह के पास अपने पैरों की टापों को पानी में स्पर्श किए बिना नदी पार करने वाला घोड़ा था ।राव देवा ने बादशाह के अशवपालक को रिश्वत देकर अपने राज्य की घोड़ी द्वारा बादशाह के घोड़े से बच्चा पैदा करवाया। राव देवा का घोड़ा दरअसल वही घोड़ा था ।

बादशाह की नियत भापकर राव देवा ने धीरे-धीरे अपना सारा परिवार दिल्ली से रवाना कर दिया । एक दिन हाथ में तलवार लिए अपने घोड़े पर बैठकर माल के बरामदे में बैठे बादशाह के सामने जा पहुंचा और अभिवादन कर कर बोला जहांपनाह आपके साथ यह मेरा अंतिम अभिवादन है। मैं विनय पूर्वक बताना चाहता हूं कि किसी भी राजपूत से उसकी तीन चीजें पाने की आशा कभी नहीं कीजिएगा उसकी तीन चीजें हैं घोड़ा ,स्त्री और तलवार कहकर बिना रुके राव देवा ने दिल्ली छोड़कर पठार की राह ली। उस नगर विहीन पथरीली राहों वाली पहाड़ी के मध्यवर्ती स्थान में मीणा और उसारा जाति के लोग अपने राजा जेता के साथ खड़कलेपत्थरों को चिनकर बनाई कुटिया में निवास करते थे। यह लोग रामगढ़ के खींची राजा के अत्याचारों से त्रस्त थे ।राव देवा ने राजा जैता से कर वसूलने आए रावगंगा से युद्ध कर उसे पीछे खदेड़ दिया।

घोड़े की परीक्षा करने के ख्याल से राव देवा ने रण क्षेत्र से भागे राव गंगा का पीछा किया। रामगंगा घोड़े सहित चंबल के पार पहुंच गया। अपने ही घोड़े जैसे उस अद्भुत घोड़े के नदी पार करने का कमाल देखकर राव देवा ने प्रसन्न होकर पूछा ।राजपूत मैं आपकी प्रशंसा करता हूं ।आपका नाम क्या है- घुड़सवार का उत्तर आया गंगार खींची। राव देवा ने अपना परिचय देते हुए राव गंगा से कहा " मैं देव हाडा और आप एक ही जाति के हैं सोहम भाई भाइयों में किसी प्रकार की शत्रुता नहीं होनी चाहिए "।

बूंदी की स्थापना( प्रतिष्ठा )किसने की:- राव देवा ने बूंदा नाल के मध्य 24 जून 1242 में बूंदी नाम के नगर की प्रतिष्ठा की और चूंकि राव देवा ने कमरतोड़ वसूली करने वाले राव गांगा से मीणाओं को मुक्ति दिलाई थी ।इसलिए मीणा और उसाराओ के राजा जैता ने राव देवा को अपना राजा मंजूर किया बाद में यही विस्तृत राज्य "हाड़ावती" अथवा "हाड़ौती "कहलाया।

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