आपने पढ़ा होगा कि केतु ग्रह मोक्ष का कारक है,पर विचार करें केतु किस प्रकार मोक्ष का कारण है
आपने पढ़ा होगा कि केतु ग्रह मोक्ष का कारक है,पर विचार करें केतु किस प्रकार मोक्ष का कारण है जिसकी अपनी शक्ति है वह दूसरे को समर्पित कर देता है पाप ग्रह के साथ पापी और शुभ ग्रह के साथ शुभ हो जाता है। जिसे सिर्फ धड़ है दिमाग नहीं है, केतु की दशा में जो भी एक्सीडेंट होते हैं या केतु प्रभाव से जो भी एक्सीडेंट होते हैं वह इंसान बहुत बुरी तरह से मृत्यु को प्राप्त करते हैं उनका ऑपरेशन से रिकवरी हो पाना मुश्किल होता है। दो पीस चार पीस में आदमी कट जाता है। जबकि मंगल के एक्सीडेंट वाले की रिकवरी हो जाती है ऑपरेशन के माध्यम से। यह भी आपको पता है अगर कोई ग्रह स्वराशि का बैठा है, उसके साथ केतु सम्मिलित हो जाए तो उसकी शक्ति तीन गुना हो जाती है और मोक्ष का अर्थ है निवृत्ति नदी ज्योतिष में कर्म कारक शनि के साथ बैठ जाए तो कर्म की निवृत्ति, ज्ञान कारक बृहस्पति के साथ बैठ जाए तो ज्ञान की निवृत्ति, आत्मकारक ग्रह सूर्य के साथ बैठ जाए तो आत्मा की निवृत्ति अर्थात मोक्ष।
जब आदमी कर्महीन हो गया कोई कर्म ही नहीं करना पड़ता यह अवस्था सिर्फ मृत्यु की दशा में आती है, का उम्र ज्ञान की निवृत्ति नहीं हो सकती, और मोक्ष का साधारण अर्थ हम जानते ही नहीं तो आध्यात्मिक अर्थ कैसे। अगर किसी चीज से निवृत्ति ही मोक्ष है, तो भौतिक शरीर के साथ कर्म की निवृत्ति कैसे हो सकती है, गीता में कहा गया है जो चीज आप सुनते हैं देखते हैं, या किसी के बारे में अच्छा बुरा सोचते हैं यह भी एक प्रकार का करम है। ज्ञान जिस दिन आपके जीवन से चला जाएगा जिस दिन आप सीखने की कला भूल जाएंगे उसे दिन से शरीर के साथ आप मृत्यु अवस्था में हैं जैसा कोमा में पड़ा एक व्यक्ति होता है।
सूर्य 10 डिग्री पर केतु के नक्षत्र में होने पर परम उच्च का होता है सूर्य आत्मा का कारक है और केतु निवृत्ति का किसी को ही लोग मोक्ष का कारक मानते हैं। दूसरा बृहस्पति धर्म का प्रतिनिधित्व करता हैं। और धर्म स्थान में केतु उच्च का होता है। नया भाव हायर स्टडी का भी होता है इसीलिए केतु को रिसर्च का कारक भी मान लेते हैं और इसे धार्मिक ग्रह भी मान लेते हैं लेकिन ज्यादातर क्लासिकल पुस्तक में इसे तामसिक ग्रह की श्रेणी में रखा गया है राहु का घर होने के कारण राहु का ही एक पार्ट है ,जो की क्रूर ग्रह ही माना गया है। केतु के तीन नक्षत्र के बारे में पढ़ेंगे तो यह ज्यादातर राक्षस गण में ही माना जाता है।
अपने टीवी के माध्यम से देखा हो या क्लासिकल पुस्तक को और धार्मिक पुस्तकों को पढ़ा हो तामसिक आदमी या रक्षा सबसे ज्यादा तपस्या करते थे और बल अर्जित करके देवताओं को चैलेंज करते थे। जिनका उत्पत्ति या बल धर्म का नाश करने के लिए है वह मोक्ष के कारक किस प्रकार से बन सकते हैं। इसके लिए दूसरा तर्क भी दिया जा सकता है कि जितने भयंकर राक्षस से ईश्वर को उन्हें करने के लिए आना पड़ा और अंत समय में ईश्वर के द्वारा प्राप्त की गई मृत्यु उनके मोक्ष का कारक बना तो इसमें अंतर करके आप अपने विवेक से सोच, ईश्वर से दुश्मनी करके जो मोक्ष प्राप्त होता है वह सच्चा मोक्ष है या ज्ञान अर्जन करके आत्मा की जो तृप्ति होती है उसकी निवृत्ति के उपरांत ही मोक्ष प्राप्त होता है।
10 डिग्री का मतलब है की सूर्य अश्विनी नक्षत्र के तीसरा चरण जिसका स्वामी बुध ग्रह होता है जो ज्ञान का ही प्रतिनिधित्व करता है अर्थात बगैर ज्ञान के मोक्ष नहीं हो सकता और जो ईश्वर से दुश्मनी करके मोक्ष को प्राप्त हुए उन्हें भी इस बात का आभास था कि हम जब दुश्मनी करते हैं तो ईश्वर का स्मरण या दुश्मन का स्मरण हमेशा करते हैं उनके इसी अटूट नियम वध होने की वजह से, और ज्ञान की वजह से ही उन्हें मोक्ष प्राप्त हुआ तो मोक्ष का कारण आप केतु को मानेंगे या ज्ञान को मानेंगे निर्भर आप पर करता है।
केवल केतु को मोक्ष का कारक मानेंगे तो आप आध कचरा ज्ञान को ही एक्सेप्ट करेंगे इस पोस्ट से आपको आपत्ति हो या आपका अलग कोई नजरिया हो तो आप हमे ईमेल कर सकते हैं।