श्री गणपति अथर्वशीर्ष का सम्पूर्ण पाठ, गणेश अथर्वशीर्ष के फायदे एवं गणपति अथर्वशीर्ष का अर्थ...
ॐ नमस्ते गणपतये। त्वमेव प्रत्यक्षम तत्त्वमसि ।
त्वमेव केवलङ् कर्ताऽसि। त्वमेव केवलम धर्ताऽसि ।
त्वमेव केवलम् हर्ताऽसि। त्वमेव सर्वङ् खल्विदम् ब्रह्मासि ।
त्वं साक्षादात्माऽसि नित्यम् ।।
अर्थात:- हे ! गणेशा तुम्हे प्रणाम, तुम ही सजीव प्रत्यक्ष रूप हो, तुम ही कर्म और कर्ता भी तुम ही हो, तुम ही धारण करने वाले, और तुम ही हरण करने वाले संहारी हो | तुम में ही समस्त ब्रह्माण व्याप्त हैं तुम्ही एक पवित्र साक्षी हो |
ऋतं वच्मि । सत्यं वच्मि ।।
अर्थात :- ज्ञान कहता हूँ सच्चाई कहता हूँ |
अव त्वम् माम् । अव वक्तारम् ।
अव श्रोतारम् । अव दातारम् ।
अव धातारम् । अवानूचानमव शिष्यम् ।
अव पश्चात्तात् । अव पुरस्तात् ।
अवोत्तरात्तात् । अव दक्षिणात्तात् ।
अव चोध्र्वात्तात् । अवाधरात्तात् ।
सर्वतो माम् पाहि पाहि समन्तात् ।।
अर्थात :- तुम मेरे हो मेरी रक्षा करों, मेरी वाणी की रक्षा करो| मुझे सुनने वालो की रक्षा करों | मुझे देने वाले की रक्षा करों मुझे धारण करने वाले की रक्षा करों | वेदों उपनिषदों एवम उसके वाचक की रक्षा करों साथ उससे ज्ञान लेने वाले शिष्यों की रक्षा करों | चारो दिशाओं पूर्व, पश्चिम, उत्तर, एवम दक्षिण से सम्पूर्ण रक्षा करों |
त्वं वाङ्मयस्त्वञ् चिन्मयः ।
त्वम् आनन्दमयस्त्वम् ब्रह्ममयः ।
त्वं सच्चिदानन्दाद्वितीयोऽसि ।
त्वम् प्रत्यक्षम् ब्रह्मासि ।
त्वम् ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽसि ।।
अर्थात:- तुम वाम हो, तुम ही चिन्मय हो, तुम ही आनन्द ब्रह्म ज्ञानी हो, तुम ही सच्चिदानंद, अद्वितीय रूप हो , प्रत्यक्ष कर्ता हो तुम ही ब्रह्म हो, तुम ही ज्ञान विज्ञान के दाता हो |
सर्वञ् जगदिदन् त्वत्तो जायते ।
सर्वञ् जगदिदन् त्वत्तस्तिष्ठति ।
सर्वञ् जगदिदन् त्वयि लयमेष्यति ।
सर्वञ् जगदिदन् त्वयि प्रत्येति ।
त्वम् भूमिरापोऽनलोऽनिलो नभः ।
त्वञ् चत्वारि वाव्पदानि ||
अर्थात :- इस जगत के जन्म दाता तुम ही हो,तुमने ही सम्पूर्ण विश्व को सुरक्षा प्रदान की हैं सम्पूर्ण संसार तुम में ही निहित हैं पूरा विश्व तुम में ही दिखाई देता हैं तुम ही जल, भूमि, आकाश और वायु हो | तुम चारों दिशा में व्याप्त हो |
त्वङ् गुणत्रयातीतः। त्वम् अवस्थात्रयातीतः ।
त्वन् देहत्रयातीतः । त्वङ् कालत्रयातीतः ।
त्वम् मूलाधारस्थितोऽसि नित्यम् ।
त्वं शक्तित्रयात्मकः । त्वां योगिनो ध्यायन्ति नित्यम् ।
त्वम् ब्रह्मा त्वं विष्णुस्त्वम् रुद्रस्त्वम् इन्द्रस्त्वम् ।
अग्निस्त्वं वायुस्त्वं सूर्यस्त्वञ चन्द्रमास्त्वम्,
ब्रह्मभूर्भुवः स्वरोम्।।
अर्थात :- तुम सत्व,रज,तम तीनो गुणों से भिन्न हो | तुम तीनो कालो भूत, भविष्य और वर्तमान से भिन्न हो | तुम तीनो देहो से भिन्न हो |तुम जीवन के मूल आधार में विराजमान हो | तुम में ही तीनो शक्तियां धर्म, उत्साह, मानसिक व्याप्त हैं |योगि एवम महा गुरु तुम्हारा ही ध्यान करते हैं | तुम ही ब्रह्म, विष्णु, रूद्र, इंद्र, अग्नि, वायु, सूर्य, चन्द्र हो | तुम मे ही गुणों सगुण, निर्गुण का समावेश हैं |
गणादिम् पूर्वमुच्चार्य, वर्णादिन् तदनन्तरम् ।
अनुस्वारः परतरः । अर्धेन्दुलसितम् ।
तारेण ऋद्धम् । एतत्तव मनुस्वरूपम् ।
गकारः पूर्वरूपम् । अकारो मध्यमरूपम् ।
अनुस्वारश्चान्त्यरूपम् । बिन्दुरुत्तररूपम् ।
नादः सन्धानम् । संहिता सन्धिः ।
सैषा गणेशविद्या । गणक ऋषिः ।
निचृद्गायत्री छन्दः । गणपतिर्देवता ।
ॐ गँ गणपतये नमः ।।
अर्थात :- “गण” का उच्चारण करके बाद के आदिवर्ण अकार का उच्चारण करें | ॐ कार का उच्चारण करे | यह पुरे मन्त्र ॐ गं गणपतये नम: का भक्ति से उच्चारण करें |
एकदन्ताय विद्महे ।
वक्रतुण्डाय धीमहि ।
तन्नो दन्तिः प्रचोदयात्
अर्थात :- एकदंत, वक्रतुंड का हम ध्यान करते हैं | वह हमें इस सदमार्ग पर चलने की भगवान प्रेरणा दे।
एकदन्तञ् चतुर्हस्तम्, पाशमङ्कुशधारिणम् ।
रदञ् च वरदम् हस्तैर्बिभ्राणम्, मूषकध्वजम् ।
रक्तं लम्बोदरं, शूर्पकर्णकम् रक्तवाससम् ।
रक्तगन्धानुलिप्ताङ्गम्, रक्तपुष्पैःसुपूजितम् ।
भक्तानुकम्पिनन् देवञ्, जगत्कारणमच्युतम् ।
आविर्भूतञ् च सृष्ट्यादौ, प्रकृतेः पुरुषात्परम् ।
एवन् ध्यायति यो नित्यं स योगी योगिनां वरः ||
अर्थात :- भगवान गणेश एकदन्त चार भुजाओं वाले हैं जिसमे वह पाश,अंकुश, दन्त, वर मुद्रा रखते हैं | उनके ध्वज पर मूषक हैं | यह लाल वस्त्र धारी हैं | चन्दन का लेप लगा हैं | लाल पुष्प धारण करते हैं | सभी की मनोकामना पूरी करने वाले जगत में सभी जगह व्याप्त हैं | श्रृष्टि के रचियता हैं | जो इनका ध्यान सच्चे ह्रदय से करे वो महा योगि हैं |
नमो व्रातपतये, नमो गणपतये,
नमः प्रमथपतये, नमस्ते अस्तु लम्बोदराय एकदन्ताय,
विघ्ननाशिने शिवसुताय, वरदमूर्तये नमः ||
अर्थात :– व्रातपति, गणपति को प्रणाम, प्रथम पति को प्रणाम, एकदंत को प्रणाम, विध्नविनाशक, लम्बोदर, शिवतनय श्री वरद मूर्ती को प्रणाम |
एतदथर्वशीर्षं योऽधीते । स ब्रह्मभूयाय कल्पते ।
स सर्वविघ्नैर्न बाध्यते । स सर्वतः सुखमेधते ।
स पञ्चमहापापात् प्रमुच्यते ।
सायमधीयानो दिवसकृतम् पापन् नाशयति ।
प्रातरधीयानो रात्रिकृतम् पापन् नाशयति ।
सायम् प्रातः प्रयुञ्जानोऽअपापो भवति ।
सर्वत्राधीयानोऽपविघ्नो भवति ।
धर्मार्थकाममोक्षञ् च विन्दति ।
इदम् अथर्वशीर्षम् अशिष्याय न देयम् ।
यो यदि मोहाद्दास्यति स पापीयान् भवति ।
सहस्रावर्तनात् यं यङ् काममधीते,
तन् तमनेन साधयेत् ।।
अर्थात :- जो इस अथर्वशीष का पाठ करता हैं वह समस्त विघ्नों से दूर होता हैं | वह सदैव ही सुखी हो जाता हैं वह पंच महा पाप से दूर हो जाता हैं | सन्ध्या में पाठ करने से दिन के दोष दूर होते हैं | प्रातः पाठ करने से रात्रि के दोष दूर होते हैं |हमेशा नित्य पाठ करने वाला दोष रहित हो जाता हैं और साथ ही धर्म, अर्थ, काम एवँ मोक्ष पर विजयी को प्राप्त करता हैं | इसका 1 हजार बार पाठ करने से उपासक सिद्धि प्राप्त कर योगी बन जाएगा।
अनेन गणपतिमभिषिञ्चति ।
स वाग्मी भवति ।
चतुथ्र्यामनश्नन् जपति स विद्यावान् भवति ।
इत्यथर्वणवाक्यम् । ब्रह्माद्यावरणम् विद्यात् ।
न बिभेति कदाचनेति ।।
अर्थात :- जो इस मन्त्र के उच्चारण के साथ गणेश जी का अभिषेक करता हैं उसकी वाणी उसकी दास हो जाती हैं | जो चतुर्थी के दिन उपवास कर जप करता हैं, वह विद्वान व्यक्ति बनता हैं | जो ब्रह्मादि आवरण को जानता है वह भय व डर से मुक्त होता हैं |
यो दूर्वाङ्कुरैर्यजति । स वैश्रवणोपमो भवति ।
यो लाजैर्यजति, स यशोवान् भवति ।
स मेधावान् भवति । यो मोदकसहस्रेण यजति ।
स वाञ्छितफलमवाप्नोति ।
यः साज्यसमिद्भिर्यजति स सर्वं लभते, स सर्वं लभते ।।
अर्थात :- जो दुर्वकुरो द्वारा पूजन करता हैं वह कुबेर के समान बनता हैं ।जो लाजा के द्वारा पूजन , पाठ करता हैं वह यशस्वी बनता हैं मेधावी बनता हैं जो मोदको के साथ पूजा पाठ करता हैं वह मन: अनुसार फल प्राप्त करता हैं | जो घृतात्क समिधा के द्वारा हवन करता हैं वह सब कुछ प्राप्त करता हैं |
अष्टौ ब्राह्मणान् सम्यग्ग्राहयित्वा,
सूर्यवर्चस्वी भवति ।
सूर्यग्रहे महानद्याम् प्रतिमासन्निधौ
वा जप्त्वा, सिद्धमन्त्रो भवति ।
महाविघ्नात् प्रमुच्यते। महादोषात् प्रमुच्यते।
महापापात् प्रमुच्यते । स सर्वविद् भवति,
स सर्वविद् भवति । य एवम् वेद ।।
अर्थात :- जो आठ ब्राह्मणों को उपनिषद का ज्ञाता बनाता हैं वे स्वयं सूर्य के सामान तेजस्वी होते हैं | सूर्य ग्रहण के समय नदी के तट पर अथवा अपने इष्ट देव के समीप इस उपनिषद का पठन करे तो सिद्धी की प्राप्त होती हैं | जिससे जीवन की समस्त रूकावटे दूर होती हैं, पाप कटते हैं वह व्यक्ति विद्वान हो जाता हैं, यह ऐसी ब्रह्म विद्या हैं |
ॐ भद्रङ् कर्णेभिः शृणुयाम देवाः ।
भद्रम् पश्येमाक्षभिर्यजत्राः ।
स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवांसस्तनूभिः
व्यशेम देवहितं यदायुः ।।
अर्थात :- हे ! गणपति हमें ऐसे शब्द एवँ विचार हमारे कानो में पड़े जो हमें ज्ञान दे और निन्दा एवम दुराचार से दूरी बनाए रखे |हम सदैव समाज की सेवा में लगे रहे तथा बुरे कर्मों से दूर रहकर हमेशा भगवान की भक्ति में लीन रहें |हमारे स्वास्थ्य पर हमेशा आपकी कृपा बनी रहे और हम भोग विलास से दूर रहें | हमारे तन मन धन में ईश्वर का वास हो जो हमें सदैव अच्छे मार्ग पर लेकर चले, सुकर्मो का भागी बनाये | यही प्रार्थना हम आपसे करते हैं |
ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः ।
स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः ।
स्वस्ति नस्ताक्ष्र्योऽअरिष्टनेमिः
स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ।।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ।।
अर्थात :- चारो दिशाओं में जिसकी कीर्ति व्याप्त हैं वह इंद्र देवता जो कि देवता गण के देव हैं उनके जैसे जिनकी ख्याति, प्रसिद्धि हैं जो बुद्धि का अपार सागर हैं जिनमे बृहस्पति देव के सामान शक्तियाँ हैं जिनके मार्गदर्शन से कर्म को दिशा मिलती हैं जिससे सम्पूर्ण मानव जाति का भला होता हैं |
जो व्यक्ति नित्य प्रतिदिन पूरी आस्था एवँ श्रद्धा के साथ Ganpati Atharvashirsha का पाठ करता है , वह व्यक्ति ऐश्वर्यवान ,धनवान एवँ बुद्धिमान बनाता है। वह व्यक्ति दिन प्रतिदिन तरक्की के ओर अग्रसर होता है ,उसके समस्त कार्य स्वतः ही पूर्ण हो जाते हैं।
अगर कोई व्यक्ति नित्य श्री गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ करता हैं, तो वह व्यक्ति दिन प्रतिदिन नित नई ऊंचाइयों को छूते हुए नोकरी में उच्च पदों को प्राप्त करता है। वह व्यक्ति हमेशा व्यापार में सफलता को प्राप्त करता है। उसके व्यापार में वह अच्छे पदों को प्राप्त करता है।
जिस व्यक्ति की कुंडली मे बुध ग्रह कमजोर अथवा अस्त है उस व्यक्ति को श्री गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ करना चाहिए जिस से बुध ग्रह मजबूत होता है एवँ व्यक्ति का मनोबल बढ़ता है उसकी बुद्धि का विकास होता है एवँ उसके सभी विघ्न समाप्त होते है।
विधार्थियों को नित्य रूप से श्री Ganpati Atharvashirsha का पाठ करना चाहिए। विधार्थियों के लिए यह एक प्रकार से महामंत्र है । जिन बच्चो का पढ़ाई में मन नही लगता, जिनका मन चंचल है या बहुत मेहनत करने पर भी सफलता नही मिल पाती उन्हें नित्य श्री गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ करना चाहिए।
जिस घर मे नित्य श्री गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ होता है उस घर में सुख एवँ प्रसन्नता स्वतः ही बनी रहती है । माँ लक्ष्मी की उस घर पर कृपा बनी रहती है। उस घर मे सभी कार्य प्रसन्नता के साथ पूर्ण होते है।