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Jai Bhole

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shree dadhimati mata chalisa | श्री दधिमति माता चालीसा

श्री दधिमति माता चालीसा:- दधि सागर में प्रगटी ज्वाला। भई सुरा सुर हुई विहाला जब से दधिमथी नाम कहायो। माँ को जग में ठाट सवायो......

dadhimati chalisa

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भगवत्यै दधिमथ्यै नमः

दधि सागर में प्रगटी ज्वाला। भई सुरा सुर हुई विहाला ।।1।।

जब से दधिमथी नाम कहायो। माँ को जग में ठाट सवायो ।।2।।

तू ब्रह्माणी तू लक्ष्मी रूपा। स्वप्न दियो माँ उदयपुर भूपा ।।3।।

निज मंदिर आकर बनायो। राणो जग में नाम कमायो ।।4।।

है त्रिशूल तुमको अति प्यारा। जिसको जगत पूजता सारा ।।5।।

पग-पग का अपराधी तेरा। दुष्टों से जीवन बचाओ मेरा ।।6।।

जिन पर कृपा आपकी होती, बिन डाले बीज खेती होती ।
भक्तों को जो व्यर्थ सतावें ,यम के द्वार कोडा खावे ।।8।।

दुःख और गृह कलेश हटाती ।लक्ष्मी बन दरिद्र मिटाती ।।9।।

तू ही उमा रमा ब्रह्माणी । भक्तों को देती मनमानी ।।10।।

तू ही काली तू ही भवानी । शत्रु नाश करो महाराणी ।।11।।

तू ही दुर्गा तू ही तारा । तू ने जग का कष्ट निवारा ।।12।।

रिद्धि-सिद्धि चेरी तेरी । गावे निस-दिन स्तुति तेरी ।।13।।

तू महिषासुर संहारा । दुर्गा बन शुंभ-निशुंभ मारा ।।14।।

जब देवों पर विपदा आई । रक्षा करी दधिमती माई ।।15।।

जब सुर असुर संहारे । तब पुकारे दुःख के मारे ।।16।।

जब दधिमथी ले अवतार पधारी । हरी सुरो की विपदा भारी ।।17।।

पुत्रहीन जो दर पे आता । बिन मांगे फल वह पाता ।।18।।

मुझे भरोसो दधिमथी थारो । तुम बिन नही और सहारों ।।19।।

दधिची की तू रखवाली । कोई न लौटा दर से खाली ।।20।।

जो-जो शरण तुम्हारी आवे । भूत पिशाच निकट नही आवे ।।21।।

नही पूजा पाठ में जानू ।आज्ञा निस-दिन माँ की मानू ।।22।।

केवल नाम आपका ध्याऊ । चरणों में नित शीश नवाउँ ।।23।।

जय दधिमथी दधीच अम्बा । भव सागर तारण अवलम्बा ।।24।।

जय चामुण्डा जय दुर्गा राणी । महिमा तुम्हरी जग न जाणी ।।25।।

तू ही जनक सुता घर आई । तुम्हारी महिमा जग में छाई ।।26।।

तू ही गिरिजा तू ही राधा । भक्तों की हरती भव बाधा ।।27।।

मुझमें है दुःख कष्ट निवारों । जय जय माँ का नाम उचारों ।।28।।

मरू मांगलोद बैठी माता । जय अम्बा जय दधिमथी माता ।।29।।

प्रेम भक्ति से गुण जो गावे । दुःख दरिद्र निकट नही आवे ।।30।।

भई प्रसन्न आदि जगदम्बा । दर्शन में नही किया विलम्बा ।।31।।

माँ का ध्यान धरे दिन राता । दर्शन दे दो दधिमथी माता ।।32।।

अष्ट सिद्धि नव निधि की दाता । हमारा दुःख हरो दधिमती माता ।।33।।

तुम भक्तन की भक्त तुम्हारे । जीते है माँ तेरे सहारे ।।34।।

जो सत बार पढें चालीसा । इच्छा पूरण करती गौरीसा ।।35।।

जो चालीसा पढें हमेशा । ता के घर नही रहे कलेशा ।।36।।

दधिमती चालीसा जो नर गावै । सब सुख भोग परम सुख पावै ।।37।।

जो यह पाठ करे दिन राता । मन वांच्छित फल वह पाता ।।38।।

पढें सुने जो यह चालीसा । नाश हो दरिद्र कष्ट कलेशा।।39।।

जयति जय दधिमती माता । कैलाश चरणों में शीश नवाता ।।40।।

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