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Tulsi Vivah - तुलसी विवाह शुभ मुहूर्त एवँ महत्व व कथा

Tulsi Vivah: हिंदू धर्म में तुलसी विवाह का बेहद महत्व बताया गया है। कहा जाता है यह वही दिन है जिस दिन भगवान विष्णु और सभी देवता....

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तुलसी विवाह शुभ मुहूर्त एवँ महत्व व कथा

तुलसी विवाह 2020, 26 नवंबर
तुलसी विवाह तिथि – गुरुवार, 26 नवंबर 2020
द्वादशी तिथि प्रारंभ – 05:12 बजे (26 नवंबर 2020) से
द्वादशी तिथि समाप्त – 07:48 बजे (27 नवंबर 2020) तक

तुलसी विवाह का महत्व :- हिंदू धर्म में तुलसी विवाह का बेहद महत्व बताया गया है। कहा जाता है यह वही दिन है जिस दिन भगवान विष्णु और सभी देवता गण 4 महीने की निद्रा से जागते हैं। इसी वजह से इस एकादशी को देवउठनी एकादशी भी कहा जाता है। जो कोई भी इंसान भगवान शालिग्राम और तुलसी का विवाह संपन्न कराता है उसके वैवाहिक जीवन में आ रही समस्याओं का निवारण हो जाता है।

साथ ही अगर किसी के विवाह में अड़चन आ रही है, रिश्ता पक्का नहीं हो रहा है, या शादी बार-बार टूट जा रही है तो उसे भी तुलसी विवाह करने का विधान बताया जाता है। इससे आपकी शादी में आ रही सभी बाधाएं अवश्य दूर होती हैं। सिर्फ इतना ही नहीं इस दिन के बारे में ऐसी मान्यता है कि जिन भी दंपत्ति को कन्या सुख नहीं प्राप्त होता है उन्हें अपने जीवन में एक बार तुलसी विवाह कर तुलसी का कन्यादान करने से बेहद ही पुण्य मिलता है।

तुलसी विवाह की कथा :- तुलसी विवाह को लेकर हिंदू धर्म में दो अलग-अलग कथाएं प्रचलित हैं। एक पौराणिक कथा के अनुसार बताया जाता है कि प्राचीन काल में जालंधर नाम का एक राक्षस हुआ करता था। इस राक्षस ने चारों तरफ बहुत उत्पात मचा कर रखा था। राक्षस बेहद ही वीर और पराक्रमी था। राक्षस की वीरता का रहस्य बताया जाता था कि उसकी पत्नी वृंदा पतिव्रता धर्म का पालन करती थी। पत्नी के व्रत के प्रभाव से ही वो राक्षस इतना वीर बन पाया था। ऐसे में उसके उत्पात और अत्याचार से परेशान होकर देवता लोग भगवान विष्णु के पास गए और उनसे राक्षस से बचने की गुहार लगाई। सभी देवताओं की प्रार्थना सुनकर भगवान विष्णु ने वृंदा का पतिव्रता धर्म भंग करने का निश्चय कर लिया।

इसके बाद उन्होंने जालंधर का रूप धारण कर छल से वृंदा का स्पर्श किया। वृंदा का पति जालंधर राक्षस जालंधर से पराक्रम से युद्ध कर रहा था, लेकिन जैसे ही वृंदा का सतीत्व नष्ट हुआ वह मारा गया। जैसे ही वृंदा का सतीत्व भंग हुआ उसके पति का कटा हुआ सिर उसके आंगन में आ गिरा।वृंदा को देखकर बड़ा क्रोध हुआ। उसने यह सोचा कि अगर मेरे पति यहाँ हैं तो आखिर मुझे स्पर्श किसने किया? उस वक्त सामने विष्णु भगवान खड़े नजर आए। तब गुस्से में वृंदा ने भगवान विष्णु को श्राप दिया कि, ‘जिस प्रकार तुमने मुझे छल से मेरे पति का वियोग दिया है उसी प्रकार तुम्हारी पत्नी भी का भी छल पूर्वक हरण होगा और स्त्री वियोग सहने के लिए तुम भी मृत्यु लोक में जन्म लोगे।’

इतना कहकर वृंदा अपने पति के साथ सती हो गई। बताया जाता है कि वृंदा के श्राप से ही प्रभु श्री राम ने अयोध्या में जन्म लिया और उन्हें सीता माता का वियोग सहना पड़ा। जहां पर वृंदा सती हुई थी वहां तुलसी का पौधा उत्पन्न हुआ। इस दिन के बारे में दूसरी प्रचलित कथा के अनुसार बताया जाता है कि, वृंदा ने भगवान विष्णु को श्राप दिया था कि तुमने मेरा सतीत्व भंग किया है इसलिए तुम पत्थर के बनोगे। यह पत्थर शालिग्राम कहलाएगा। तब विष्णु ने कहा है, ‘ वृंदा मैं तुम्हारे सतीत्व का आदर करता हूं लेकिन तुम तुलसी बनकर सदा मेरे साथ रहोगी। जो भी मनुष्य कार्तिक एकादशी के दिन तुम्हारे साथ मेरा विवाह कराएगा उसकी हर मनोकामना अवश्य पूरी होगी।’

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